Tuesday, November 27, 2018

इकतीस जोड़ी आंखों के लिए


इकतीस जोड़ी आंखों के लिए

प्रिय छोटे भाइयो,

हम सब को साथ रहते हुए करीब 4 महीने होने जा रहे हैं , जुलाई सेशन से मैं कोटा आया था, आपका शिक्षक बनकर, आपका अधीक्षक बनकर ।
मैंने इन 4 महीनो में बहुत सीखा है, ढेरों अनुभव लिए हैं, उनमें दोनों प्रकार के अनुभव शामिल हैं, अच्छे बुरे सब ।

जिंदगी भी तो इसी का नाम है, काम करो गलतियाँ जो हों उनसे सीख लेकर उन्हें सुधारो और आगे बढ़ो।

शुरुआत में सब डरे होते हैं, तुम लोग भी डरे थे, नयी जगह पर शुरू में सबका ऐसा ही हाल होता है, हम नयी जगह पर जाते है, हमें अनजाना भय लगा रहता है, कुछ समय बीतता है, हम उस जगह को जानने लगते हैं, और फिर हमारा डर भी निकल जाता है, ऐसा ही तो है, हमे डर लगता है तो हम उसे जाने अच्छे से जाने तो हमारा भय , डर दूर चला जाता है, हम जिस चीज़ को समझने से भागते रहेगे हम डरते रहेगे और हम जैसे ही उसे जान लेंगे तो हमारा भय चला जायेगा।
आमतौर पर लोगों को धर्म या उससे जुड़ी चीज़ों से डर क्यों लगता है, या धर्म के नाम पर लोगों को आसानी से डराया कैसे जाता है, इसका सीधा जबाब है उन्हें धर्म के बारे में पता ही नहीं होता, और धर्म के नाम पर ठगने वाले उनके उसी न जानने के डर का फायदा उठाकर उन्हें मूर्ख बनाते रहते है, भारत में आज सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाया जाता है, और केवल ये इसलिए संभव हो पाता है, क्योंकि लोगों को धर्म के बारे में कुछ भी नहीं पता होता । इसलिए तुम लोग खूब जिज्ञासु बनो और खूब सारे अनुभव लो जिससे तुम्हारा डर खत्म हो जाये और आत्मविश्वास बढे।
आत्मविश्वास ये कमाल का शब्द है, थोड़े शब्दों में कहूँ तो ये वो शक्ति है जो हर काम के लिए जरुरी है, अगर ये आपके पास नहीं है तो आप काम नहीं कर पाएंगे या उसे बीच में ही छोड़ देंगे।
इसलिए डरने की बजाय आत्मविश्वास जगाएँ और ये तभी होगा जब आप उस विषय को अच्छे से जान लेगें। आत्मविश्वास से लबरेज़ व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।

दूसरी बात जब हम सीखते हैं, तो जो चीज़ हमें सीखने के लायक बनाती है, वह विशेषता है, विनम्रता,विनय । संस्कृत के एक छन्द के एक पद में लिखा है विनयात् याति पात्रताम् मतलब विनय से पात्रता(योग्यता) आती है, पात्रता मतलब हम उस लायक हैं, या नहीं। जैसे शेरनी का दूध स्वर्ण के बर्तन में ही टिकता है, वैसे ही हमारा सीखना भी विनय नाम के पात्र होने पर ही हमारे पास रह पाता है, इसलिए चाहे कुछ भी हो विनम्रता नहीं छोड़ना, कई बार ऐसा भी होगा की आपको लगेगा कि बड़े विनय करने योग्य नहीं है,  ये उनकी समस्या है, की वो उस योग्य न बने, लेकिन उनकी अविनय करके तुम उनका बुरा नहीं बल्कि अपने आपको बुरा बना रहे होंगे। इसलिए विनय  और विनम्रता का दामन थामे रखना।

तीसरी बात जो मेरे गुरू जी ने जो हमें बतायी थी वो यह की अपने माता-पिता-गुरुओं से पारदर्शिता रखना, जीवन में समस्याएं सबको आती हैं, । माता-पिता-गुरुजन से पारदर्शिता बनाये रखने वाले अक्सर उन समस्याओं से उबर जाते हैं, हमारी शारीरिक, मानसिक चीज़ों के बारे में, छोटी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातों को अपने माता-पिता या गुरुजनों से साँझा (शेयर) जरूर करें। इससे आपका उनपर आपका और उनका आपके प्रति विश्वास बना रहेगा।

राहुल सांस्कृतायन नाम के एक बड़े हिन्दी के विद्वान हुए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दीक्षांत भाषण जो बेहद संछिप्त था में एक बात कही थी, की डिग्री बताती हैं,कि आपने अभी पढ़ना सीखा है, अब पढाई पूरे जीवन भर करनी है, जब आप सायकिल चलाना सीख लेते हैं तो आप सायकिल चलाना छोड़ नहीं देते बल्कि उसका प्रयोग जीवन भर करते रहते हैं, ऐसे भी आप गर सीखते कैसे है? ये सीख गये हैं, तो जीवन भर इसका प्रयोग करते रहे मतलब सीखते रहे अनवरत, हमेशा।

एक कुंजी के बारे में बताता हूँ और वह कुंजी है, निरंतरता । हम छोटी छोटी चीज़े लगातार करते रहें तो एकदिन वह ही बड़ा भारी काम हो जाता है, लेकिन निरंतरता नहीं टूटनी चाहिए, इस संदर्भ में तुम लोग कभी शोशेन्क रिडम्पशन नाम की हॉलीवुड मूवी देखना । तुम्हे पता चलेगा छोटी चीज़ धैर्य से करते रहने का फल कित्ता मीठा और शानदार होता है।

चलो आखिरी बात बताता हूँ, जब बालक पढ़ने के लिए स्कूल छात्रावास में आते हैं, तब सब अपने अपने ग्रुप ढूढ़ लेते , जो पढाई करने वाले होते वो पढाई करने वालों को ढूंढ लेते, शैतान बच्चे शैतान बच्चों का ग्रुप ढूंढ लेते हैं,जो औसत होते हैं वो औसत का ग्रुप। अगर कभी अपना आँकलन करना हो हम कैसे बनने जा रहे तो अपने ग्रुप को देख लेना। आपको सही जबाब मिल जायेगा।
आप सभी को भविष्य की बहुत शुभकामनाएँ।

आपका बड़ा भाई
पीयूष जैन शास्त्री



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