Sunday, July 29, 2018

आयुष के लिए

रविवार के पत्र सीरीज में लगातार कड़ियां जुड़ती जा रही है और यह सब हो पा रहा है , आप सब पाठकों प्रतिक्रियाओ और ढेर सारे आशीर्वाद से , मुझे आपसे बहुत सारे सुझाव और महत्वपूर्ण सलाहें  मिली है ,कोशिश रहेगी की उन पर अमल किया जावे , आप सब पाठकों की प्रतिक्रियाएं उत्साह को बढ़ाने वाली है आप सभी को धन्यवाद , आशा है आगे भी आप ऐसी ही प्रतिक्रियाएं भेजते रहेंगे। धन्यवाद

 तो पेश है सीरीज का पांचवा पत्र 

प्यारे भाई
आयुष
यहाँ मैं सागर में कुशलता पूर्वक और स्वस्थ हूँ , और आशा है ,  तुम जयपुर में स्वस्थ रहकर अपनी पढाई अच्छे से कर रहे होगे।
पिछले महीने तुम्हे बुखार आया था ,कुछ दिन पहले भी तुम्हारी यही समस्या थी, तुम बार बार बीमार हो रहे हो , इसके एक काम करना , सवेरे से उठकर लीटर भर पानी और एक नीम्बू का सेवन करो साथ ही सवेरे से जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम भी शुरू करो । इससे तुम्हारे शरीर की गंदगी दूर हो जावेगी और तुम निरोग रहकर अच्छे से पढाई पर ध्यान लगा पाओगे।
    आमतौर पर होस्टल में रहने वाले लड़कों और लड़कियों  को ये समस्या होती है , उनकी दिनचर्या भोजन व्यवस्थित नहीं हो पाता और उनका शरीर भी इसे स्वीकार नही करता और वे जल्दी बीमार हो जाते हैं इसलिए उन्हें स्वस्थ लिए केवल इतनी जरुरत है , कि वे व्यायाम करते रहें और अपना पेट साफ रखें।
  तुम इन बातों का पालन करो तो जल्दी पूर्ण निरोग हो जाओगे और पढाई के साथ स्केच और पियानो भी ढंग से सीख और समझ पाओगे।
  बहुत दिनों से तुम्हे कुछ बातें कहनी थी कुछ राज बताने थे , शायद ये सब बातें फोन पर या सीधे न कह पाता , इसलिए इस चिट्ठी का आसरा लिया ।
   आयू तुम बढ़ रहे हो सीख रहे हो और आगे के लिए योजनाएं तय कर रहे हो लेकिन इन सब के दौरान कुछ बाते जो अहम है उन्हें हमेशा याद रखो ,, तुम जिस वय में हो उस समय के किये गए कार्य और तुम्हारी सोच तुम्हारे पूरे जीवन की रूपरेखा तय कर देती है इसलिए कोई भी निर्णय लेते वक्त याद रखो इसका असर पूरे जीवन पर पड़ेगा ।
     हाँ खानपान , लड़कियाँ , दोस्ती , संगती इन सब जगह इस बात को लगा लेना की आज किये सारी बातें तुम्हारे पूरे जीवन पर असर डालने वाली हैं।
   मुझे पता है पापा के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित तुम मुझसे रहे , और मुझे हमेशा अपना आदर्श माना पर यकीन मानो मैं ये कभी नहीं चाहूंगा कि आयुष कभी पीयूष की कॉपी कहलाये , मैं हमेशा से ये चाहता हूँ की मेरा भाई आयुष के नाम से जाना जाये , उसका व्यक्तित्व उसकी तरह बने  , मुझ से बेहतर ,, मेरे स्मारक के  विदाई समारोह में मैंने एक बात कही थी शायद तुम्हे याद हो , मैंने कहा था सब आज दादा के गीत गा रहे है पर मैं दादा जैसा नई बनना चाहता , मैं पीयूष बनना चाहता हूँ , मैं दूसरा दादा बनने की बजाय  पीयूष बनना ज्यादा पसंद करूँगा। ये बात इसलिए नहीं कही की दादा मेरे आदर्श नहीं हैं बल्कि इसलिए कही क्योकि मैं दूसरे के जैसा क्यों बनूँ जब मेरे पास मेरे जैसा बनने का विकल्प हो
इसलिए तुम भी जो बनना वो भी पहला बनना दूसरा या तीसरा नहीं।
अपनी मौलिकता और अलग छाप वाला व्यक्तित्व कभी मत खोने देना बच्चे।

मैं तुमसे तीन साल बड़ा हूँ , इसलिए तुमसे बहुत ज्यादा अनुभव नई है , पर हां तुमसे थोड़े ज्यादा अनुभव जरूर मेरे पास है, उनके आधार पर कहता हूँ की विद्यार्थी जीवन तुम्हारी सबसे बड़ी उपलब्धि है कॉलेज में पढ़ पाना और उस पर भी एक संस्कारित माहौल में पढ़ना हर किसी को नसीब नहीं होता । हम और तुम भाग्यशाली रहे की हमें एक शानदार  माहौल मिला , आज जब पैसे के लिए मारा मारी और चकाचोंध हो रही है उस वक्त हमने अध्यात्म और व्यवहारिकता दोनों के सम्मिश्रण रूप शिक्षा प्राप्त की ,और इस प्रकार का निर्णय यक़ीनन  हमारे सबसे बेहतरीन निर्णयों में से एक हैं।
हमेशा यह याद रखो , मायने यह नहीं रखता की , हमारे पास कितने साधन है,  मायने ये रखता है कि हम उपलब्ध साधनों का किस तरह इस्तेमाल करते है |
    होस्टल में जब हम तुम साथ थे , तब मैं एक कठोर सीनियर की तरह तुमसे पेश आया करता था लेकिन यह तुम्हारे भलाई के लिए था , मैं तुम्हे खुद की मदद करने देना चाहता था , मैं नहीं चाहता था कि मेरा भाई कभी किसी सहायता के लिए किसी की भी तरफ देखे , यहाँ तक की अपने भाई की तरफ भी , बल्कि मैं यह चाहता था कि आयुष इतना सबल बने की उसे कभी किसी की मदद की जरुरत ही न पडे ,, और आखिर तुमने मुझे निराश नहीं किया ।
    मैं होस्टल में हफ़्तों तुमसे नहीं मिलता था , पर ऐसा कोई दिन नहीं रहा की तुम्हारी खबर मुझ तक न रही हो।
    मैं तुम्हे सुरक्षा के नाम पर  बंधन में नहीं सिखाना चाहता था , मेरी दिली तमन्ना थी , तुम स्वतंत्र रहकर उन खतरों के अनुभव लो,  जिनसे तुम्हे आगे जीवन जीने में मदद मिले , तुमने उनका सामना भी किया और कसौटी पर खरे निकले।
    बस अब कुछ सालों में ही तुम्हारी जिंदगी की परीक्षा शुरू हो जावेगी देखते हैं उसमें क्या कमाल दिखाते हो । हाँ भविष्य की ढेरों शुभकामनाएँ और ढेरों आशीर्वाद तुम्हे।
  तुम तुमसे बनो बिलकुल अपनी तरह।
      भाई तुमसे बेहद प्यार करता हूँ हमेशा से लव यू था और रहेगा
       अपने दिल को हमेशा इतना ही पवित्र बनाये रखना।
                                   बड़ा भाई
                              पीयूष जैन शास्त्री
 

Sunday, July 22, 2018

दिशा के लिए २

चौथा रविवार
अगर आप इस ब्लॉग को पहली बार पढ़ रहे हैं तो आप यही रुक जाएं और इस श्रृंखला का दूसरा पत्र पढ़ ले फिर ये पत्र पढ़े आपको पूरी बात समझने में आसानी होगी।

प्रिय दिशा
  मैं कोटा में कुशलता पूर्वक , स्वस्थ और मजे में हूँ और आशा करता हूँ की तुम भी सागर में अपनी पढाई करते हुए स्वस्थ रहकर अपनी जिंदगी के ताने-बाने बुन रही होगी |
साक्षी या जीजाजी ने तुम्हे पिछला पत्र पढने दिया होगा ओर आशा है वह पत्र तुम्हे पसंद आया होगा|  पिछले पत्र में कुछ बातें पढाई के बारे में की थी, इस बार फिर  कुछ बातें शिक्षा और पढाई से सम्बंधित करूँगा
पिछले पत्र में जो बताया था की शिक्षा के बोझ हो जाने का एकमात्र कारण उसका उद्देश्य बदल जाना है .....  दरअसल हर काम में सबसे ज्यादा फर्क इसी कारण से पढता है.... कई सारे उदहारण है इसके...... खेर तुम जो अब आगे बढ़ रही हो तो कुछ बातों का ध्यान रखो और हर जगह याद रखो की अगर कुछ नया सीखने का मौका मिल रहा है तो वहाँ जरुर सीखो ... क्या सीखना है ये तुम्हे चुनना होगा ..... कई बार लोग इसमें कहेगे अच्छा बुरा सब सीखो .. लेकिन अच्छे के साथ बुरा केवल उतना सीखो की तुम किसी और का बुरा न होने दो और न खुद के साथ बुरा होने दो ...... मतलब बुरे को  सीखने का मतलब इतना ही है की ये करने लायक नहीं है , अच्छे को सीखने का मतलब बस ये ही करने लायक है ......
चलो पढाई और शिक्षा के बारे में देखते है शिक्षा पुरे जीवन को प्रभावित और परिष्कृत करने वाली विद्या है पर अगर ये ऐसा नहीं कर रही तो समझ लेना .....कही न कही झोल है |
बाकि जीवन भर सीखना और शिक्षा चलती है लेकिन शुरुआती शिक्षा क अपने मायने है ये पुरे जीवन भर अपना प्रभाव रखती है और जो नीव अच्छी हो गयी तो बिल्डिंग मजबूत रहेगी..... पर आज के दौर में कमजोर नीव पर बड़ी और सुन्दर दिखावटी इमारतों का चलन है जो जल्दी दरारों से भर जाती है और आखिर में भरभरा कर गिर पड़ती है  ..... तुम्हे अपनी नीव मजबूत बनानी होगी जिससे आगे का जीवन मजबूत और टिकाऊ खुशियों से भरा रहे.....
विकल्प हमेशा रहता है अब हमे चुनना होता है की कठिन और बेहतरीन मंजिल वाला रास्ता चुने या सरल और बेकार मंजिल वाला रास्ता चुने ..
चुनाव तुम्हे करना है ....
बाकि मैं हमेशा कहता हूँ चीज़े केवल उतनी ही आसान होती है जितनी आसान उन्हें हम बनाते है ....
अपने रास्तो को इसे ही आसान बनाते जाओ बच्चे ....
ढेर सारा प्यार
         पीयूष शास्त्री




Monday, July 16, 2018

शिवांगी ताई

संस्कृत में तीन वचन होते हैं एक वचन द्विवचन और बहुवचन ,, 2 पत्र लिखे जा चुके है और ये आज तीसरा पत्र याने बहुवचन वाला पत्र ।
तो आज का पत्र लिखा जा रहा है कैरोलिना में रहने वाली जिन्हें मैं ताई बुलाता हूँ मतलब शिवांगी ताई को
जब यह पत्र लिखना शुरू किया था तो बहुत लोगों के मैसेज आये की उन्हें भी पत्र लिखा जाए और जब मैंने पिछले ब्लॉग की लिंक ताई को भेजी तो उन्होंने कहा मुझे भी लिखना ओर तब मुझे लिंक भेजना खेर ये पत्र पहले ताई को मेल किया जाएगा और फिर आप पाठकों को नज़र होगा...
साथ ही सभी पाठकों से कहूँगा आपकी जो भी प्रतिक्रियाएं है उन्हें कॉमेंट सेक्शन में मुझ जरूर बताएं  , आपकी प्रतिक्रियाये इन पत्रों के लेखन में सांस की तरह हैं।
प्यारी
शिवांगी ताई
मैं यहाँ बिल्कुल बढ़िया हूँ और पूरी तरह जिंदा भी , आशा है आप भी देश के बाहर अपनी दुनिया मे कुशलता से होंगी..
आज मैं आपको कोटा के मिजाज के बारे में बताता हूँ (आज शाम को घर भी निकल रहा हूँ)
जब मैं और निलय जी (मेरे सीनियर) बाइक से दूसरे दिन कोटा के लिए निकले तो उन्होंने मुझे चेतावनी दी
"बेटा कोटा में बाइक से घूमने से पहले इत्ता समझ लो कि वापस जिंदा आने की कोई गारंटी नहीं है"
खेर बाइक का हैंडल छोड़के उन्हें ही थमा दिया: कुछ दूर निकले ही थे कि चेतावनी के रंग दिखे ,एक आदमी खुली चलती सड़क पर लट्ठ घुमा रहा था दूर से निकलने पर भी मेरी पीठ पर लट्ठ की हवा पड़ी ।, खेर जिंदा बिना किसी नुकसान के हम सब्जी मंडी पहुँचे , वहाँ देवरानी जेठानी नाम की एक दुकान थी मेरा माथा तो अब सनका यार घरों में देवरानी जिठानी की बनी हो ऐसा  सुनने में आना बहुत दुर्लभ बात है और यहाँ देवरानी जिठानी दोनों मिलकर एक दुकान चला रही अब इतना झेलने के बाद असली बात तो अब आयी जैसे ही हम बाहर आये तो उस दुकान की बाहरी दीवाल पर लिखा था " यहाँ पिसाब करना मना है अन्यथा ढंडा पड़ेगा"
अन्यथा जैसा तत्सम और ढंडा जैसा शब्द  एक पंक्ति में पढ़के दिल खुश हो गया।
मेरठ के बाद कोटा में भी यही हाल है कि सामने गाडी भी हो तो कोई गाडी नहीं रोकता ब्रेक पर पैर रखना यहाँ गुनाह माना जाता है शायद या ये सोच हो की साला सामने वाला नहीं रोक रहा तो हम काहे रोके... एक एक्सीडेंट मेरे सामने भी हुआ वो लोग गिरे उठे और लड़ने लगे खेर  हमनें लड़ाई न दीखके होस्टल में जाने में ही भलाई समझी...
बाकि जिस होस्टल में मैं हूँ वहाँ खाने में मसाला बहुत होता है तो शुरुआत में बिना छोंक की दाल सब्जी खाने लगा,  पर इससे पेट खराब हो गया , फिर मसाले वाला भोजन शुरू किया तो पेट एकदम सही हो गया शुरुआत में परेशानी हुई मसाले वाले भोजन में पर अब आदत हो गयी, दरअसल हमारे जो ये मसाले होते हैं एंटीबायोटिक होते है यहाँ का पानी थोड़ा भारी और फ्लोराइड वाला है उसे न पचाने के कारण पेट खराब हुआ, पर  मसाले जो एंटीबायोटिक थे उन्हें खाते ही पानी पचना शुरू हो गया , कई बार ऐसा ही तो होता है हमारे साथ , जो चीज़ हमारे पास आसानी से उपलब्ध होती है उसके बजाय हम डॉक्टर के पास जाकर सही में बीमार हो जाते हैं,,, जबकि वो समस्या खाने में थोड़े परिवर्तन करके दूर की जा सकती है ।
मेरे विद्यार्थियों के साथ उनके बीच में रहता हूँ तो अक्सर कोशिश ये करता हूँ उन्हें दवाइयाँ न दी जाएं और उनके खाने में सुधार करके उनकी शारीरिक समस्याएं सुलझा दी जायें और आमतौर पर मैं सही साबित होता हूँ।
दूसरी तीसरी बार कोटा सिटी में बाइक लेके जाने पर कोटा के लोग ज्यादा बेहतर लगे
ये कहना मुश्किल है कि कोटा ने मुझे अपनाया है या मैंने कोटा को अपनाया है शायद हम दोनों ने ही एक दूसरे को अपना लिया है बिलकुल अपनी तरह।
आप अपने नए घर में शिफ्ट हो चुके होंगे, भारत आने पर इसकी भी पार्टी ली जायेगी ।
बाकी ढेर सारी बातें है जो आपको बतानी है पर कल पेपर है तो कभी और ऐसे ही किसी पत्र में शेष बातें होंगी।❤️
                                 स्नेहाभिलाषी
                                  पीयूष जैन   शास्त्री

Sunday, July 8, 2018

दिशा के लिए

पिछले रविवार को जो पत्र लिखा गया था उसपर आपकी प्रतिक्रियाये उत्साहवर्धक थी आपकी उन प्रतिक्रियाओ  का असर है, की आज मैं दुबारा रविवार का पत्र लिखने की हिम्मत जुटा पाया आप सभी को धन्यवाद.............
इस बार का पत्र मैंने लिखा है अपनी भांजी दिशा जैन  को जो अभी सागर में पारस विद्या विहार नामके एक स्कूल में पढ़ने वाली   छात्रा है और बेहद सुलझे दिमाग की बच्ची है 
ये पत्र हमारी बातचीत और आज के प्राइवेट स्कूलों की परेशानियों पर आधारित है
दिशा
मैं आजकल कोटा में हूँ, बिलकुल ठीक और स्वस्थ हूँ ,मजे में हूँ..और आशा है तुम भी एकदम उर्जा से भरी हुई एकदम स्वस्थ और पढाई में लगी होगी.........
तुम मुझसे अभी गोटेगाँव में सेफाली दीदी की शादी में मिली थी , मुझे अच्छे से याद है तुमने दुल्हन के माथे पर कितने प्यार से किस किया था.......  
हमारी ढेर सारी बाते हुई थी लेकिन उन बातों में आजकल की दमघोटू और बेवजह की लादी हुई पढाई पर ज्यादा बातें हुई थी ........ऐसे ही जब मैं सागर के एक स्कूल में पढाता था ... तब भी बस में जाते हुए अक्सर छात्र इस के बारे में मुझ से ढेर सारी बाते किया करते थे और आखिर उस वक्त तक मेरे पास उनका कोई समाधान नहीं होता था , की लादे हुए बोझ को केसे कम   करें ????
तुमने मुझे उस दिन अपने स्कूल की बाते और व्यर्थ के कानूनों को खुद पर लदा महसूस करती हो बताया था
मेरी स्कूलिंग के समय में ऐसा बोझा नहीं था हमे कभी अपना स्कूलिंग वाला समय बोझ नहीं लगा.... हम अपनी कक्षा के बाहर बिलकुल फ्री होते थे शैतानियो और खेल के लिए ...स्कूल से वापस घर आने के बाद भोजन करता और सामने वाले खेल के मैदान में खेलने निकल पड़ता ,,, २-२.३० घंटे तबियत से खेलने के बाद मंदिर वाली पाठशाला का समय हो जाता और मम्मी आवाज़ देती और मैं पाठशाला की ओर भागता (दरअसल शाम वाली पाठशाला में मैं जाता इसलिए था क्योकि मुझे कहानी सुनने का शौक था ओर वहाँ कहानियाँ सुनाई जाती थी) उसके बाद ५वी के बाद खनियाधाना होस्टल में चला गया..... वहाँ इसलिए गया क्योकि मुझे बस होस्टल में जाना बचपन से ......वहाँ जाने के बाद एक निश्चित दिनचर्या में ढल गया ; हालाँकि पुरानी   दिनचर्या में बस दो चीज़े जुड गयी सुबह की पूजन और शाम की भक्ति ; मेरे लिए ये अच्छा ही था मुझ जैसे मूड स्विंगर को ये दोनों चीज़े शांत रखने में मदद करती थी ; चलो अब मैं पुनः तुम्हारे बोझ वाले मुद्दे पर आता हूँ…….
मुझे लगता है उस समय और हमारे समय में केवल एक तब्दीली हुई है वो है उद्देश्य को लेकर बस इससे सारा कबाडा हो गया....... हमारे समय तक जब नया युग शुरू हो गया था लेकिन अधिकांश शिक्षा से जुड़े लोग खुद पर जिम्मेदारी महसूस करते थे और पढाते वक्त या स्कूलिंग सुविधाएँ देते वक्त महत्व शिक्षा को देते थे और आज उनका उद्देश्य केवल पैसा हुआ है जब उद्देश्य पैसा हुआ तो आडम्बर ने जगह ले ली और फिर आगे की परेशानियाँ शुरू हो गयी जो हमे आज दिख रही है पर इसका बीज तो उद्देश्य बदला तभी पैदा हो गया तथा बस परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं .........
मैंने देखा है बच्चो को जो पढाई के चक्कर में खेल तक नहीं पाते ; सागर का ही एक विद्यार्थी मुझे मिला उसने मुझे अपनी दिनचर्या बताते हुए कहा की मुझे खेलने का समय तब मिलता है जब स्कूल में खेल(स्पोर्ट) का कालांश(पीरियड) होता है ; तब मुझे इस बात की गंभीरता पता चली , पहले मुझे लगता था की आज की पीढ़ी को ज्यादा सुविधाए हैं पर बाद में पता चला की उन्हें जल्दी समझदार बनाके उनके बचपन को तहस नहस किया जा रहा है ; कई परेशानियाँ और है पर इन सबका एक ही हल है की आपस में सामंजस्य बनाकर पढाया जाए ; और सुविधाओ के साथ साथ केवल प्रयास यह हो की जो योग्ताये हैं उन्हें निखारने के कोशिश की जाए उन पर कुछ भी अनुपयुक्त थोपा न जाए|
दुनिया तेज़ी से भाग रही है तो हमे भी तेज़ी लानी होगी ; पर भागने पहले सोच तो ले की आपको जाना कहाँ है पहुचना कहाँ है तुम चाहते क्या हो – सादा सुकून भरी जिंदगी या भरी पूरी लेकिन  चिंता वाली जिंदगी ;

दिशा मैं बस ये कहुगा की नम्बरों के पीछे मत भागो ये तुम्हारा जीवन तय नहीं करते ; केवल उतना पढ़ो जितना जरुरी है हां अनुभव ढेर सारे लो ; बेवजह और अनुपयुक्त पढाई का बोझा सिर पर मत लो ; तुम्हे जिंदगी जीना है और अच्छे से जीना है तो एक बात गाँठ बांध लो टॉपर्स अक्सर वो जिंदगी नहीं जी पाते जो वो जीना चाहते हैं ; इसका मतलब यह नहीं की पढाई ही छोड़ दो इसका मतलब सिर्फ इतना है की जरुरत और अपनी दिमाग की सामर्थ जितना पढ़ो , पर इतना नहीं की आज का दिन जीना भूल जाओ |
तुम समझदार हो ; जहीन हो तिस पर मेरी भांजी हो इसलिए सिर्फ इतना कहूँगा की पढाई और परिस्थितियाँ  कैसी भी हो चिंता का जीवन में कोई स्थान नहीं होना चाहिए |
भविष्य की ढेरो शुभकामनाए और बहुत सारा प्यार
हमेशा साफ दिल की मालिक बनी रहो ,, मासूमियत बरक़रार रहे |
                                               
                                                      पीयूष शास्त्री    



कायनात को

कोटा आने से पहले निश्चित किया था की रविवार को किसी एक को पत्र लिखूंगा , हाँ क्योकि मेरे  समय का सदुपयोग हो सके और किसी एक विचार को मूर्त रूप दे सकूँ , बस ये वही प्रयास है | रविवार का पत्र ; ये श्रंखला इसलिए भी प्रारंभ की है ताकि नए लोगों से और पुराने लोगों से बातचीत हो सके उनके विचार मैं जान सकूँ और अपने विचार उनसे साझा कर सकूँ , ये केवल प्रयास भर है मेरी बात आप तक पहुँचाने का और इस प्रयास की पहली कड़ी में पहला पत्र लिखा गया बाराबंकी की प्यारी सी लड़की कायनात को 
पत्र आपके सामने प्रस्तुत है 


रंग बिरंगे दिल 
वाली लड़की
मैं यहाँ पर बिलकुल ठीक हूँ और स्वस्थ हूँ और आशा है तुम भी बाराबंकी में कुशलता पूर्वक होगी , हां जिन्दा भी

कोटा आने से पहले सोचकर आया था की रविवार को किसी एक को पत्र लिखूंगा , याने चिट्ठी अगर एंड्रोइड होता तो हाथ से लिखकर फोटो भेज देता खेर ;
कुछ चीज़े जो मुझे तुम्हे बतानी थी 
कल जो तुमने कहा था की तुम्हे कोई कमाल नहीं करना ये अच्छा संकेत है , तूफान आने से पहले लोग ऐसा ही सोचते हैं की ये शान्ति का समय है दरअसल वही सबसे रोमांचक समय होता है जब तूफान खुद की तैयारी मैं जुटा होता है |
कमाल की बात मेरे साथ होती है की आमतौर पर मैं लोगो से मिलता हूँ प्रभावित होता और कई बार आदर्श भी बना लेता हूँ पर अंततः होता ये है की वो उतना महान नहीं होता जितना हम मानते हैं दरअसल ये होता इसलिए है की हम अक्सर लोगो को एक पक्ष से देखके उसको बड़ा मान लेते है या उसके पूरे चरित्र या व्यक्तित्व को एक विशेषता के कारण कमाल का मान लेते हैं पर ऐसा होता नहीं है | ये सब बात बताने का फायदा क्या है ये सुनो , की जब हम किसी से मिले तो बिना किसी पूर्वाग्रह के और जब आदर्श बनाये तो अच्छी तरह जाँच और परीक्षा करके इससे होगा क्या की हम बाद में निराश होने से बच जायेगे , इसे आज के बाबाओ वाले पोपडम के माहोल और दूषित हवाओ के सन्दर्भ में भी पढ़ सकती हो  |
जीवन में कुछ चीज़े मैं करना चाहता हूँ इसलिए नहीं की वो बेहतरीन है या लोगो ने उन्हें अच्छा बताया बल्कि इसलिए क्योकि मैं उन्हें करना चाहता हूँ उसमे एक अच्छा शिक्षक , अच्छा पति ,  अच्छा दोस्त , अच्छा पुत्र  और थोडा बहुत लेखक बनना शामिल है | 
ये  जगजाहिर पीयूष शास्त्री की  इच्छाओ की लिस्ट है पर एक लिस्ट पीयूष बाबा की इच्छाओ की भी है पर वो बेहद जूनून और पागलपन से भरी है ये लिस्ट किसी रोज बताऊंगा तुम्हे ,,,,,
ये सब चीज़े तुम्हे बताने का फायदा ये है की मेरा खुद से किया चिट्ठी वाला वायदा पूरा हुआ और दिल का सुकून अलग से बाकि बातें फिर कभी ....................
                                                                                                                                                  पीयूष शास्त्री 
                                                                                       
                                                                                      

उन लड़को के लिए जो सपने देखते है

उन लड़को के लिए जो सपने देखते है   आशा है आप सभी स्वस्थ और आनंद में होंगे ,  कुछ दिनों से आप लोगों से कुछ बातें कहनी थी ,  पर आवश्यक कार्यो...