पिछले रविवार को जो पत्र लिखा गया था उसपर आपकी प्रतिक्रियाये उत्साहवर्धक थी आपकी उन प्रतिक्रियाओ का असर है, की आज मैं दुबारा रविवार का पत्र लिखने की हिम्मत जुटा पाया आप सभी को धन्यवाद.............
इस बार का पत्र मैंने लिखा है अपनी भांजी दिशा जैन को जो अभी सागर में पारस विद्या विहार नामके एक स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा है और बेहद सुलझे दिमाग की बच्ची है
ये पत्र हमारी बातचीत और आज के प्राइवेट स्कूलों की परेशानियों पर आधारित है
ये पत्र हमारी बातचीत और आज के प्राइवेट स्कूलों की परेशानियों पर आधारित है
दिशा
मैं
आजकल कोटा में हूँ, बिलकुल ठीक और स्वस्थ हूँ ,मजे में हूँ..और आशा है तुम भी एकदम
उर्जा से भरी हुई एकदम स्वस्थ और पढाई में लगी होगी.........
तुम
मुझसे अभी गोटेगाँव में सेफाली दीदी की शादी में मिली थी , मुझे अच्छे से याद है
तुमने दुल्हन के माथे पर कितने प्यार से किस किया था.......
हमारी ढेर सारी बाते हुई थी लेकिन उन बातों में आजकल
की दमघोटू और बेवजह की लादी हुई पढाई पर ज्यादा बातें हुई थी ........ऐसे ही जब
मैं सागर के एक स्कूल में पढाता था ... तब भी बस में जाते हुए अक्सर छात्र इस के
बारे में मुझ से ढेर सारी बाते किया करते थे और आखिर उस वक्त तक मेरे पास उनका कोई
समाधान नहीं होता था , की लादे हुए बोझ को केसे कम करें ????
तुमने
मुझे उस दिन अपने स्कूल की बाते और व्यर्थ के कानूनों को खुद पर लदा महसूस करती हो
बताया था
मेरी
स्कूलिंग के समय में ऐसा बोझा नहीं था हमे कभी अपना स्कूलिंग वाला समय बोझ नहीं
लगा.... हम अपनी कक्षा के बाहर बिलकुल फ्री होते थे शैतानियो और खेल के लिए
...स्कूल से वापस घर आने के बाद भोजन करता और सामने वाले खेल के मैदान में खेलने
निकल पड़ता ,,, २-२.३० घंटे तबियत से खेलने के बाद मंदिर वाली पाठशाला का समय हो
जाता और मम्मी आवाज़ देती और मैं पाठशाला की ओर भागता (दरअसल शाम वाली पाठशाला में
मैं जाता इसलिए था क्योकि मुझे कहानी सुनने का शौक था ओर वहाँ कहानियाँ सुनाई जाती
थी) उसके बाद ५वी के बाद खनियाधाना होस्टल में चला गया..... वहाँ इसलिए गया क्योकि
मुझे बस होस्टल में जाना बचपन से ......वहाँ जाने के बाद एक निश्चित दिनचर्या में
ढल गया ; हालाँकि पुरानी दिनचर्या में बस
दो चीज़े जुड गयी सुबह की पूजन और शाम की भक्ति ; मेरे लिए ये अच्छा ही था मुझ जैसे
मूड स्विंगर को ये दोनों चीज़े शांत रखने में मदद करती थी ; चलो अब मैं पुनः
तुम्हारे बोझ वाले मुद्दे पर आता हूँ…….
मुझे
लगता है उस समय और हमारे समय में केवल एक तब्दीली हुई है वो है उद्देश्य को लेकर
बस इससे सारा कबाडा हो गया....... हमारे समय तक जब नया युग शुरू हो गया था लेकिन
अधिकांश शिक्षा से जुड़े लोग खुद पर जिम्मेदारी महसूस करते थे और पढाते वक्त या
स्कूलिंग सुविधाएँ देते वक्त महत्व शिक्षा को देते थे और आज उनका उद्देश्य केवल
पैसा हुआ है जब उद्देश्य पैसा हुआ तो आडम्बर ने जगह ले ली और फिर आगे की
परेशानियाँ शुरू हो गयी जो हमे आज दिख रही है पर इसका बीज तो उद्देश्य बदला तभी
पैदा हो गया तथा बस परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं .........
मैंने
देखा है बच्चो को जो पढाई के चक्कर में खेल तक नहीं पाते ; सागर का ही एक
विद्यार्थी मुझे मिला उसने मुझे अपनी दिनचर्या बताते हुए कहा की मुझे खेलने का
समय तब मिलता है जब स्कूल में खेल(स्पोर्ट) का कालांश(पीरियड) होता है ; तब मुझे इस
बात की गंभीरता पता चली , पहले मुझे लगता था की आज की पीढ़ी को ज्यादा सुविधाए हैं
पर बाद में पता चला की उन्हें जल्दी समझदार बनाके उनके बचपन को तहस नहस किया जा
रहा है ; कई परेशानियाँ और है पर इन सबका एक ही हल है की आपस में सामंजस्य बनाकर पढाया जाए ; और सुविधाओ के
साथ साथ केवल प्रयास यह हो की जो योग्ताये हैं उन्हें निखारने के कोशिश की जाए उन
पर कुछ भी अनुपयुक्त थोपा न जाए|
दुनिया
तेज़ी से भाग रही है तो हमे भी तेज़ी लानी होगी ; पर भागने पहले सोच तो ले की आपको
जाना कहाँ है पहुचना कहाँ है तुम चाहते क्या हो – सादा सुकून भरी जिंदगी या भरी
पूरी लेकिन चिंता वाली जिंदगी ;
दिशा
मैं बस ये कहुगा की नम्बरों के पीछे मत भागो ये तुम्हारा जीवन तय नहीं करते ; केवल
उतना पढ़ो जितना जरुरी है हां अनुभव ढेर सारे लो ; बेवजह और अनुपयुक्त पढाई का बोझा
सिर पर मत लो ; तुम्हे जिंदगी जीना है और अच्छे से जीना है तो एक बात गाँठ बांध लो
टॉपर्स अक्सर वो जिंदगी नहीं जी पाते जो वो जीना चाहते हैं ; इसका मतलब यह नहीं की
पढाई ही छोड़ दो इसका मतलब सिर्फ इतना है की जरुरत और अपनी दिमाग की सामर्थ जितना
पढ़ो , पर इतना नहीं की आज का दिन जीना भूल जाओ |
तुम
समझदार हो ; जहीन हो तिस पर मेरी भांजी हो इसलिए सिर्फ इतना कहूँगा की पढाई और परिस्थितियाँ कैसी भी हो चिंता का जीवन
में कोई स्थान नहीं होना चाहिए |
भविष्य
की ढेरो शुभकामनाए और बहुत सारा प्यार
हमेशा
साफ दिल की मालिक बनी रहो ,, मासूमियत बरक़रार रहे |
पीयूष शास्त्री
" इसका बीज तो उद्देश्य बदला तभी पैदा हो गया तथा बस परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं "
ReplyDeleteबिलकुल सही बोले पीयूष
🙏🙏🙏🙏
Deleteशुक्रिया
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