Saturday, September 29, 2018

नमिता ताई को

प्रिय
नमिता ताई
बहुत दिनों से कुछ बातों पर गौर करता हूँ तो पाता हूँ की अब बातें और आदतें बदल गयी है, अब सिर्फ हम बचे खालिस पीयूष, थोड़े जिन्दा और थोड़े मजे में
खेर आजकल अपने पास हूँ, खुद को जान रहा हूँ, या इसी कोशिश में लगा हूँ|
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की आप भी ददरी में पूर्ण स्वस्थ और कुशलता से होगी.....
मेरा कमरा यहाँ के कमरों में सबसे बड़ा है, और सबसे शानदार बात ये है की इसमें एक खिड़की भी है. पहले इसमें कांच की खिड़की के साथ एक जाली लगी हुई थी. घुटन हुई तो चम्मच और पेंचकस की मदद से उस जाली को हटा दिया, और फिर खुली साँस ली....अक्सर रात को कुर्सी लेकर उसी खिड़की से बाहर आसमान और सामने के पेड़ो को निहारता रहता हूँ.. कई बार घंटो.. खुली हवा मुझे सारी चिन्ताओ से मुक्त कर देती है... वास्तव में प्रकृति की हर वास्तु , प्राणी , व्यवस्था , स्थान सबकुछ सुन्दर है, उसमे अगर कही कुछ दोष है तो वह हमारी द्रष्टि और मन में है, निष्पक्ष होकर प्रकृति को देखे या किसी भी चीज़ को देखें तो वह हमेशा सुन्दर ही दिखेगी और खुद को आनन्द से भर देगी ...
हम प्रकृति के नियमो का उल्लंघन कर विकसित होना चाहते है परन्तु ऐसा करके हम अपने लिए ही कांटे वो रहे हैं,, मेहनत, श्रम , परिश्रम , एकाग्रता ये प्रकृति के सिद्धात है और हम प्रकृति से जुड़े रहकर अपना विकास करना चाहते हैं, तो हमे भी इन सिद्धांतो का पालन करना होगा...
साथ ही प्रकृति हर किसी को सुधरने का मौका जरुर देती है, पर सीमा का उल्लंघन करने वालों को अपराध का दंड देकर ही छोडती है ....
हाँ आजकल मेरा रूम बड़ा बिखरा हुआ है, मेरी टेबिल पर किताबों का अम्बार लगा है बेतरतीब बिखरी किताबे और ढेरों कागज, और रोजमर्रा का सामान मसलन शीशा, कंघी, ब्रश , मंजन, पेन, गिलास, चार्जर .. खेर कल ये चीज़े अपने स्थान पर होगी.. दशलक्षण के दौरान बस पढना लिखना ही होता रहा ... नीचे बैठकर पढ़ने वाली चौकी पर ... अब कुर्सी टेबिल पर होगा ..
आजकल जो देश में मचा है .. राजनीति या इससे जुडी चीज़े उनसे एक बात साफ होती है जहाँ उन्माद और अहम डेरा डाले हो वहां श्रेष्ठ विचार किसी मूल्य के नहीं रहते.. शायद इसी कारण देश में असुरक्षा और अविश्वास बढ़ा है...
ये सारी बाते उस छुटकुल वरखा के लिए है
अच्छा लगता है, हर जगह एक सपोर्टर के रूप में देखकर.. आत्मविश्वास को भरना महत्वपूर्ण बात है और आप वही करते हो, और छा जाते हो, इन कुछ चीजों के अलावा कुछ नहीं बहुत बाते बाकि है वो फिर कभी..........
ढेर सारी मुहब्बत के साथ
आपका छोटा
पीयूष




Monday, September 17, 2018

सोनम को पत्र

प्यारी बहन
सोनम
कोटा और मजे एक दूसरे के पर्यायवाची है आजकल मेरे लिए, इसलिए कोटा में मजे है दरअसल असली मजे आते हैं सीखने में और यहाँ सीखने के खूब मौके है, इसलिए मैं यहाँ खुश हूँ, तुम भी मालथौन में पढ़ते हुए मजे में होगी, और आसपास के लोगो को हँसा रही होगी.....
अरपंच समाचार यह है, की १४ से दशलक्षण प्रारंभ हो गये हैं, और शास्त्री के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, की मैं बाहर प्रवचन करने के लिए नहीं गया, कोटा में ही होस्टल में रह रहा हूँ, लेकिन माहोल वही है, शानदार और शालीनता से वैराग्य और संयम के पर्व मनाये जा रहे ... ये पर्व मुझे पसंद है, विशुद्धि को बढ़ने वाले, इनकी विशेषता यही की आमतौर पर पर्वो पर खाने और खेलने की बाते होती है. मस्ती की बाते होती है, लेकिन ये पर्व हमे विचार करने का मौका देते हैं, रूककर खुद को देखने का, साल भर क्या किया इसको देखने का, सालभर क्या करेगे इसकी योजना बनाने का, १० दिन तक १० धर्मों को समझना और सालभर उनको जीवन में उतारना, मतलब पूर्ण प्रयोग... और सच ही तो है धर्म परिभाषा नहीं प्रयोग हैं.. इन दश धर्मों की एक खासियत मुझे लुभाती है, वह ये की ये पर्व जीव मात्र के गुणों से सम्बंधित है किसी व्यक्ति विशेष भर के नहीं, और कोई भी इसे मना सकता है, वर्ष भर मना सकते है, क्रोध नहीं करना,घमंड नहीं करना, मायाचारी नहीं करना, जैसी बातें हमे जितनी साधारण लगती हैं पर इनके अन्दर खूब सार भरा है, बस सोचने की जरुरत है ..
तुम भी इन पर्वों को संयम और त्याग के साथ मना रही होगी.
खेर तुम्हे पत्र लिखना था बहुत पहले पर पता नहीं तुम्हे लिखने को कुछ ऐसा था ही नहीं जो पत्र में लिखा जा सके..
परसों इन्जीनियर डे मनाते वक्त तुम्हारी याद बेहद आई,  उस वक्त लगा इंजीनिअर तुम जैसे होने चैये जो किचिन में अपने इंजीनियरिंग के नमूनो का इस्तेमाल करके लजीज भोजन बना कर खिला दें (शादी के बाद मैं और तेरी भाभी तेरे पास खाना बनाने की ट्रेनिंग लेने आयेंगे सो तैयारी करके रखना सब सिखाने की), लास्ट टाइम केले के पराठों का स्वाद अब भी जीभ पर है, खेर इंजीनियर इंजिनीयरिंग छोड़कर कुछ भी कर सकते हैं .... तुम्हारे सब शौक लडको वाले, आदते सब लडको की, बेफिक्र होना तुम्हे देखकर आया, खेर मुझे लगता है मेरे मामा के घर २ लड़के हैं, एक नानू और एक तुम..
मुझे तुम्हारे विचार पसंद आते थे, तुमसे शरारतें सीखी,(हमने कुछ दोस्तों ने भी मिलकर एक दोस्त को लेटर लिखा था वोई वाला) और लड़ना भी, बड़ा मजा आता है तुम जैसे बच्चे बने रहने में, खेर जिम्मेदारियां अपनी जगह पर खुद के भीतर का बच्चा बचा रहना चैये, ससुरा वोई तो कमाई है, अपनी |
खेर फोन पर ढेरों बातों में कुछ अधुरा रह जाता है, वह शायद कभी पूरा नहीं होता, ढेरों सवाल मेरे शायद कभी पूरे न होंगे...
खेर चिढाना कभी बंद न करने वाला सो ज्यदा खुश मत होना....
तेरे लिए पिछले साल कुछ पंक्तिया लिखी थी
सवेरे सवेरे पत्तियों पर पड़ी ओस की बूंद सी
नाजुक या गुलाब की कली सी कोमल है ये
नर्म घास की हरियाली सी जिन्दा या
 हवाओं में घुंघरू की तरह तैरती सी है ये
बातें करती बेखोफ झूमती गाती सी है
या नाचती इठलाती पगलाती सी है
तेज़ रौशनी सी ये  ज्ञान की पतासी सी है
कुल्हड़ में गर्म चाय से उठती कुँहासे सी है
तू दिल में बसी थोड़ी ख़ामोशी सी है
                                 और मेरी कलाई पर बंधी पीली राखी सी                                                           बैठ कर करते थे वो फोन पर बातों सी है
                                 थोड़ी बचाके रखी पिछली लड़ाई सी है
    ढेर सारी बधाई और बहुत सारा प्यार पहुचे    
                                                                         छोटा भाई
                                                                           पीयूष 



Sunday, September 9, 2018

डिम्पल को



प्रिय
डिम्पल जगवानी
जिन्दा होना मेरी चॉइस है, इसे मैं ओरों पर नहीं छोड़ता , लेकिन इतना और समझ लो खाली साँस लेने क नाम जिन्दा रहना नहीं है, बल्कि जब हम खुद को जाहिर करते हुए ऐसे काम करे जिससे खुद को खुद के वजूद का अहसास हो उसे मैं जिन्दा होना मानता हूँ, आशा है तुम  भी जिन्दा होगी और अपने कारनामो से खुद के वजूद से मुखातिब भी
फिलहाल कोटा में हूँ, पढ़ते पढ़ाते हुए कुशलता से, तुम भी ग्वालियर में कॉलेज में पढ़ते और लड़ते हुए कुशलता  से होगी .
तुम्हे काफी दिनों से पत्र लिखने की सोच रहा था, पर हर बार कोई न कोई वजह से टालता रहा पर आज टाल न सका, पत्र किसी को एक वजह से लिखता हूँ, उससे अपनी बात बेहतर तरीके से कहने के लिए,  आज कल सोशल मीडिया का जमाना है, जहाँ आसानी और जल्दी से बातें एक दूसरे तक पहुँच जाती हैं, पर उसमे वो बात नहीं जो धीरज से किसी प्यारे के ख़त का इंतजार करते हुए होती थी, लेकिन  आजकल वो इंतज़ार ख़त्म कर दिया, अज की टेक्नोलॉजी ने और वो मज़ा भी ...
तुम सुलझी हुई लड़की हो, शर्मीली नहीं हो, पर पारंपरिक और सांस्कृतिक वातावरण में जन्मने और जीने वाली (हम लडको को हर लड़की प्यारी लगती हैं) उसके बावजुद नेता टाइप, किरांतिकारी मटेरियल हो, बिलकुल किसी स्वतंत्रता सेनानी की तरह, पर तुम्हारा समझदार रुख इन सब चीजों को स्थिर और  एक साथ इकठ्ठा बनाये रखता है, मैं जितनी भी लड़कियों से मिला, तुम्हारी उम्र की , उनमे तुम मुझे हमेशा चौका देती हो, अपनी समझदारी से...
खेर कोई भी कार्य हो उसकी शुरुआत महत्वपूर्ण होती है, अगर शुरुआत अच्छी होती तो उसका अंत भी अच्छा ही होता है, इसका कारण है हमे जब किसी कार्य का विश्वास होता है, और जब काम की शुरुआत सही हो जाए तो वह विश्वास द्विगुणित हो जाता है और उत्साह से हम वह कार्य करने लगते है और वह काम शानदार ढंग से अंजाम तक पहुंचता है , बकौल प्रेमचंद “भय और उत्साह संक्रामक वस्तुएं हैं
तुम्हे अक्सर कॉलेज से जगह जगह प्रदर्शन के लिए जाते देखता सुनता हूँ, हर बार बेहद महत्वपूर्ण चीजों के लिए शासन से लड़ता देखता हूँ, तो खुद के लिए प्रेरित हो जाता हूँ , जब ये इतनी फूल सी लड़की कर सकती है तो हम क्यों नहीं .....
जन्मदिन के दिन तुम्हारी तरफ से कोई शुभकामनाएं नहीं आई थी, और हम नाराज हो गये थे, लेकिन मेरे स्वभाव में ये रहा की किसी से लम्बे समय तक मैं नाराज़ नहीं रह पाता, ज्यादा से ज्यादा, १ दिन उसके बाद सब नाराज़गी गायब, मुझे उसके द्वारा की गयी पहली अच्छाईयाँ उसकी एक गलती पर भारी लगती है, तो जल्दी से माफ़ कर देता हूँ ... कॉलेज टाइम पर तो  होता ये था, पीयूष कुमार की किसी से लड़ाई हो गयी और लड़ाई के एक घंटे बाद पीयूष कुमार उस लड़के के गले में हाथ डाले घूम रहे है, चाहे कितना भी गुस्सा क्यों न हो दिन भर से ज्यादा नहीं टिकता....उसके बाद सब सामान्य हो जाता... इससे मेरा दिमाग ठिकाने पर और दुरुस्त रहता है.. मेरी बेफिक्री का एक कारन यह भी है....
हाँ बेफिक्री और बेखबरी में बड़ा अंतर है, उसे समझे बिना भी बड़ी गडबड हो जाती है ... कई बार लोग बेखबरी को बेफिक्री समझ लेते है, और बाद में रोते रहते हैं ,,,,
 अजीब सा लगता है जब लोग आसान सी समस्या को पहाड़ सा मानकर बैठ जाते है और निराश हो जाते है, बेहद दुखी ..  अगर वो उस पर बैठकर विचार करें तो वो समस्या हवा हो जाए ... लेकिन उन्हें दुखी होने और निराश होने में ही मजा आता है, मेरे पास ऐसे लोगो की लम्बी लिस्ट है.  
दो बातें कहूँगा
१.     उत्सुकता अच्छी चीज़ है पर गलत जगह की उत्सुकता हमारे लिए घातक ही होती है .. इसलिए उत्सुकता हो लेकिन हमारे क्रिएशन में... प्रेरणा सभी की जरुरत होती है, इसलिए प्रेरित करने वाली वस्तुओ के करीब रहे....
२.     इन्सान जब जब शांत रहता है तब तब वह कार्य का पर्यवेक्षण और आंकलन बेहतरीन तरीके से करता है, क्योंकि उस समय हमारा दिमाग भी शान्त और एकाग्र  होता है, इसलिए जब फैसले लेना हो तो  दिमाग को शान्त होने दो ...
 जैसी अभी हो लड़ाकू, जुझारू और प्यारी हमेशा वैसी ही रहो लड़की ......
और हाँ समझदार होने में कोई समझदारी नहीं है
ढेर सारा प्यार पहुचें लड़की
                                                                                                                                                                       शुभकामनाओ सहित                                             
                             पीयूष जैन शास्त्री    
                                                                                 

Tuesday, September 4, 2018

दीदा और अप्पू के लिए


प्रिय
दीदा & अप्पू
मैं यहाँ कोटा में मजे में हूँ और बेहद कमाल के दिन यहाँ गुजर रहा हूँ तुम दोनों  भी घर पर बेहद खुश और मजे में होंगी.......... तुम्हे याद होगा पिछले ११ सालों में हम केवल एक राखी पर साथ थे वो भी पिछले बार , पिछले बार उन १० सालों की कसर पूरी गयी थी, लेकिन इस १२ वे साल फिर वाही ढांक के तीन पांत , फिर घर नहीं आ पाया ........ इसके लिए बहुत सारा सॉरी, लेकिन इस बार तुम दोनों की बेहद याद आई  ......

आज धानी और ध्वनि ने मुझे राखी बाँधी , और नेहा भाभी ने घर से आई राखियाँ मेरी कलाई पर बाँध दी ..... उस वक्त मुझे पिछले साल की याद आ रही थी जब ९ भाई ओर ८ बहनें मिलकर, साथ में बुआ को लेकर  पापा चाचा मंजले पापा संजले पापा के साथ मिलकर राखी  का त्यौहार मना रहे थे .... मै नीली जेकेट और सफ़ेद कुरते पजामे में था और बहुत ज्यादा हँसी मजाक चल रहा था, तुम दोनों मुझे राखी बांधने के लिए थाली सज़ा लाइ थी....

मुझे ये त्यौहार पसंद है, शुरू से, किसी धार्मिक वजह से नहीं,  न ही किसी कहानी के कारण, विष्णु ने रक्षा की इसलिए भी नहीं और किसी रानी ने किसी राजा को राखी बांधी इसलिए भी नहीं, मुझे बस ये त्यौहार पसंद है , तुम दोनों के कारण, साल भर तुम दोनों हमारे लिए साल के ३६४ दिन त्यौहार मनाके रखती हो, और एक दिन जब तुम्हारा त्यौहार आता है, तो इसे मनाने की बहुत वजह हो जाती है |

अब इस त्यौहार की मुख्य थीम पर आयें तो भाई बहन की रक्षा का वचन लेता है, और बहन के मुसीबत में पड़ने पर उसकी रक्षा करता है, मेरे लिए हमेशा इससे उलट बात रही, दीदा आपने बचपन में ही मेरे गहरे, गटर के गड्ढे में गिरने पर, छोटी होने बावजूद जोर जोर से चिल्ला के, दूर खड़े एक कजिन को आवाज़ देकर मेरी जान बचा ली, और मैं आज आपको यह पत्र लिख पा रहा हूँ, ये सब आपका कमाल है, छोटी उम्र में अपने बलविहीन होने पर भी बुद्धि से अपने भाई को जिन्दा बचा लेने का |

छोटी छोटी बातों से लेकर बड़ी बड़ी बातों में भी मेरी प्रमुख सलाहकार , मैं जब भी घर पर रहता हूँ, बेफिक्र रहता हूँ, जानता हूँ, दीदा है न, हर काम मेरा कर देने के बाद कभी कोई अहसान नहीं जताना, ये कहाँ से सीखा पता नहीं पर मैं ये हमेशा नोटिस करता हूँ | मेरी हर छोटी बात पर ध्यान रखने वाली मेरी दीदा , मुझे जब भी एक्स्ट्रा फोन चलाने पर तुम्हे कहता देखता हूँ, “मम्मी ये पीयूष तो अपनी आंखे ख़राब करके मानेगा, कितनी प्यारी आँखे थी इसकी, परिवार में सबसे अच्छी अब देखो २ इंच अन्दर हो गयी, मेरी इतनी सुन्दर आंखे होती तो खूब ख्याल रखती” तो  संतुष्टि हो आती है, पिछले जन्म में बड़े पुण्य किये जो तुम मिल गयी, जब भी घर मे कोइ नयी खाने कि चीज आती है तो मैनें कभी तुम्हे पूरा पीस खाते नहीं देखा, आधा पीस उसमे से मुझे रखा जाता था, पता था पीयूष को मीठा पसंद है, हमेशा एक्स्ट्रा मिठाई खाने के बाद प्यार भी हमेशा एक्स्ट्रा मिला |

हाँ जब तुम मुझे लड़कियों से फ़ोन पर बात करते और चैट करते देखती हो, और तुरंत टोक देती हो, तो अच्छा लगता है, लेकिन किसी लड़की का फ़ोन या मेसेज आने पर फ़ोन मेरे हाथों में थमा देती हो, तो विश्वास हो जाता है, विश्वास अब भी कायम है, और ये विश्वास मुझे सही सलामत रखता है, मुझे आश्चर्य होता है, की आपके पास मेरा फोन होने पर भी मेरे कभी मेसेज चेक नहीं होते, कभी कॉल डिटेल नहीं देखी जाती, तुम ये केसे कर पाती हो?? मुझे नहीं पता, लेकिन यही वो चीज़ है, जो मुझे प्रेरित करती है, की कम से कम इस लड़की का विश्वास नहीं टूटना चाहिए...

तुम्हे बेकार की बातों पर कान देना नहीं आता, एक एक जिम्मेदारी को निभाने वाली जिम्मेदार बहन के रूप में हमेशा दिखती हो, पता नहीं क्यों ? बचपन से लेकर अब तक तुम्हे बड़े की तरह व्यवहार करते देखा है, अलबत्ता पिछले साल बस तुम्हारा बचपन देखा “मम्मी मेरे दांत आ रहे और मुझे दांत दिखाना “ मुझे चिड़ाना, तुम पहले बड़ी हुई फिर बड़े होकर बच्ची हुई |

अप्पू तुम जैसी लड़ाकू पर समझदार मैंने बहुत कम लोगों को देखा है, तुम मुझसे छोटी हो पर मुझ से बहुत समझदार, लादी गयी हर बुरी चीज़ को सिरे से नकार देना, और अपना रास्ता खुद बना लेना, यही तुम्हारा जीनियस है, दुनिया में बहुत से लोग हैं , जिन्हें अच्छे बुरे की पहचान नहीं है, पर तुम उन लोगों में से नहीं हो,  और यह बात मुझे हमेशा गर्व से भर देती है| सब के साथ कठोरता से पेश आने वाली मेरी बहन नं जाने मेरे साथ इतनी सरल केसे हो जाती है, पता है तुम्हे मैंने तुमसे ज्यादा डांट खाई है  और पापा से कम, अच्छा लगता है जब तुम जैसा छोटी अपने अपने बड़े भाई को रास्ता दिखा देती हो ....    

किसी को एक चाय तक पिलाने में न नुकुर करने वाली लड़की साधन न होने पर भी रूम पर ही मेरे लिए पूरी थाली भरकर लगा देती है, और बड़े प्यार से एक बार कहने के बाद न खाने पर गुस्सा दिखाकर १ रोटी एक्स्ट्रा खिला देती है तो यकीं होता है, की छोटी बहन का बड़ा भाई होना कितने भाग्य की बात होती है.....

हाँ मुझे तुम दोनों से बड़ा मोह है... तुम दोनों की राखियाँ मेरे पास पहुँच गयी, पर मुझे लगा मुझे भी तुम्हे राखियाँ भेजना चैये था, पर नहीं भेज पाया पर अँगली बार जरुर..... इसी तरह मेरा ख्याल रखने और सुरक्षित रखने के लिए ........

ऐसे ही सरल बने रहो दोनों ....

दीदा को चरण स्पर्श और अप्पू को ढेर सारा प्यारा ... हां ठीक है मैं म. प्र. का हूँ तो अप्पू तुम्हारे भी पाव छू लेता हूँ, ढेर सारा आशीर्वाद अप्पू........

तुम्हारा भाई
पीयूष   



Monday, September 3, 2018

निक्की मौसी को


प्रिय
निकिताशा मौसी
मैं यहाँ कोटा में हूँ और कुशलता पूर्वक पूर्ण स्वस्थ हूँ, आशा करता हूँ आप भी स्वस्थ और कुशलता से जिंदगी जी रही होंगी,
      अरपंच समाचार ये है कि कोटा मेरे लिए बेहतर साबित हुआ, और मेरा मन यहाँ लग रहा है, साथ ही निरंतर नई चीजें और नई बातें यहाँ सीख रहा हूँ, बहुत दिनों से आपसे कुछ बातें कहनी थी, कुछ विचार साझा करने थे, यह पात्र उसी का प्रतिफल है;   
         दिन कितने जल्दी निकलते है पता ही नहीं चलता, और वक्त तो मुट्ठी से रेट जैसा फिसलता ही रहता है, फिर भी रह जाती है, हमारे अवचेतन मष्तिष्क में खूबसूरत यादें , जो सपनो में चैतन्य हो जाती हैं|
        दरअसल ये खूबसूरत यादें तब बनती जब हमारे विचार भी खूबसूरत हों, और अच्छे विचार हमारी सबसे महँगी और बहुमूल्य सम्पदा हैं, जिन्हें सहेजा जाना बेहद जरुरी है, क्योकि सपने इन्ही से बनते हैं,जिन्हें देखकर जिन्दा रहने का अहसास होता रहता है|
       जैसे जैसे हम किसी काम में डूबते जाते हैं, वैसे वैसे वे हमारी आदतें बनते जाते हैं, बस फर्क इतना है, अच्छी आदतें हमारे हमारे अच्छे विचारों को दिखाती हैं, और बुरी आदतें हमारे विचारों के भटकाव को दिखाती हैं|
       जैसा आजकल मेरे साथ हो रहा है
       मुझे व्यक्तित्व की विभिन्नता वाले इंसान पसंद है, ऐसा तो पूरी तरह नहीं कहूँगा, हाँ लेकिन ऐसे लोग मुझे अपनी और आकर्षित करते है, कुछ चुनिन्दा लोगों के मैं नाम भी बता सकता हूँ,पर शायद उन्हें ये अच्छा न लगे, खेर बात इतनी है, व्यक्तित्व की इस विभिन्नता के कारण फेन हूँ आपका |
       चलो आज एक और बात बताता हूँ, आपको मौसी क्यों कहता हूँ? पूछोगी क्यों.... तो जबाब यह है, मुझे मौसी आप जैसी चाहिए थी, मेरी भी मौसी है, यकीन मानिये मुझसे बेहद प्यार करती हैं, हम चारों भाई बहनों में सबसे सबसे ज्यादा मुझे उनका लाड और स्नेह मिला, पर बेहद शर्मीली और हमेशा काम के बोझ में दबी रहती हुई, भीरू स्वभाव की, पर मुझे लगता है, वो आप सी होती, जिन्दा दिल और बेबाक तो और भी खूबसूरत होती |
        मुझे बचपन में एक बात सिखा दी गयी थी, की जो मन को अच्छा लगे, वो करो, पर इतना ध्यान रखो की मन को स्वच्छंद न होने दो, निर्णय के पहले खूब सोचो और निर्णय लो, पर निर्णय लेने के बाद न सोचो, क्योकि उसके बाद सोचने का कोई फायदा नहीं, अक्सर इस सीख से मुझे फायदा हुआ|
        आजकल इन बच्चों के बीच हूँ, जो मुझे सर की बजाय भाईसाब बोलते है, बस कोशिश ये करता हूँ, इनकी आँखों की चमक कमजोर न पड़े, माँ बाप से दूर होना किसे भाता है, पर ये बच्चे ये कुर्बानी दिए हैं, इस आशा से की हम बेहतर बनेगे, कल के लिए, इसलिए मैं भी बस इसी में लगा रहता हूँ, बस ये बात मुझे खुशी से भर देती है |
        आपको एक ग्रुप से जाना जब मैं उसके पेनल में नहीं था, पर आपकी सोच और विचार मुझे बेहद प्रभावित करते थे, आपसे बहुत सी चीज़े सीखी भी – लोगों को आब्जर्व केसे करते है, किस बात को कितना महत्व देना है, कैसे लोगों कैसे व्यवहार करना है, लिखते कैसे हैं, अपनी शर्तों पर जीते कैसे है, ये तमाम बातें मुझमें बदलाव लेकर आये|
       आज भी मेरी आदत है, मैं किसी के बारे में जल्दी निर्णय नहीं करता, आपके बारे में भी यही किया, बहुत समय बाद आपके बारे में राय बनाई, और वो बिलकुल वैसी ही है, जैसी आप हैं |
        मुझे विचारों का उन्मुक्त होना पसंद है, पर उन्हें लागू कैसे करना इसमें अक्सर मात खा जाता हूँ, लेकिन इसको लगातार सीख रहा हूँ, केसे बिना नुक्सान के कोई विचार लागू किया जा सकता है| और मेरे पापा जैसा परसों कह रहे थे, जो किसी का बुरा नहीं सोचते, उनका कभी बुरा नहीं होता|
          आप बिलकुल आप सी हो और ये बात सबसे अहम है| जुलाई 2015 में अपनी डायरी में 2 बातें लिखी थी, जिन्हें आपको बताना चाहता हूँ;  
         १. वो बने बनाये रास्ते पर चलते हैं, पर हमे तो कंकड काटों पर अटे रास्तों पर अपना रास्ता बनाकर चलना है|
         २. बुराई कभी इतनी नहीं बढ़ सकती की अच्छाई का अस्तित्व पूरी तरह उखाडकर फेंक दे|
          बस इतना जानता हूँ, गर जिंदगी खेल है तो 
रो रो कायर खेलो में, आँखों में अश्रु लाते हैं                                           सच्चे खिलाडी तो खेलो में, जान लगा डट जाते हैं
  हमेशा स्वस्थ रहें और जिंदादिली बनी रहे
ढेर सारा प्यार इस छोटे से बच्चे की तरफ से  
                                                           आपका
                                                      पीयूष जैन शास्त्री
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Saturday, September 1, 2018

गीत को पत्र


प्यारी बहन 
  गीत
मैं अभी कोटा में हूँ, और बेहद खुशनुमा दिन गुजार रहा हूँ, और आशा है, तुम भी स्वस्थ रहकर कुशलता पूर्वक जिंदगी के मजे ले रही होगी |
       मैं जबसे कोटा आया हूँ, तबसे मेरी खुशी बढती जाती है, बच्चों के बीच रहना उन्हें पढाना, उनके साथ खेलना, उन्हें मनाना, उन्हें सिखाना, उनसे सीखना यकीन मानों बेहद खूबसूरत होता है, आपको हमेशा ये चमकती आंखें उत्साहित करती रहती हैं|
        मेरी यहाँ २ कक्षाएँ होती हैं, एक सुबह एक शाम, विषय जैन दर्शन के कुछ ग्रन्थ और सामान्य सदाचार, और ये दोनों ही कक्षाएँ मुझे लेना पसंद हैं, क्योकि इन से बच्चों के साथ साथ मैं भी सीख रहा हूँ| मैंने ये अनुभव किया की किसी विषय को अच्छे से पढ़ने का तरीका उसे पढाना शुरू कर दो, ऐसा नहीं की बिना पढ़े ही कुछ भी पढ़ा दो और आप सीख जावेंगे, बल्कि हम तब सीखते है, जब हम पढाने से पहले उसकी तैयारी करते हैं, पता नहीं छात्र कौन से प्रश्न पूछ लें, इसलिए जो विषय पढाना उसकी बारीकी से पढाई हो जाती है|

चलो छोडो मैं भी अपनी लेकर बैठ गया, तुमसे ढेर सारी बातें करना है और बताना है, उनमे से कुछ अभी और कुछ बाद मे
          तुम्हारी और मेरी बात फेसबुक के एक हास्य ग्रुप के पेनल से शुरू हुई, तुम सुलझी हुई थी, और मुझे ऐसे लोगों से बातें करने में आनंद आता है, फिर लिखना देखा, बस तबसे लगा ये लड़की अपनी तरह की है, तुम्हे पता है, जितने  दिमाग में विचार आते हैं उसका १०० गुना कम बोलने में आता है और जितना बोलने में आता है उससे १०० गुना कम लिखने में आता है, याने की १० हजार विचार होने पर एक विचार लिखने में आता है, इसलिए लिखना इतना आसान भी नहीं , प्लीस अब तुम ये मत कहना की आसान काम अपने को पसंद भी कहाँ है|
        दरअसल जिंदगी अपनी तरह की एक ही होती है, उसमे कुछ भी करना आसान नहीं होता, परेशानियाँ पीछा नहीं छोडती, पर परेशानियाँ मुझे डराने और परेशा करने की बजाय एक नए उत्साह को भर देती है, मैं ये दावा नहीं कर रहा की मैं परेशानियों से बिलकुल नहीं घबराता या नहीं  डरता , हां मैं डरता हूँ, पर सीधे हार कर हथियार नहीं डालता, मैदान में डट जाता हूँ, कभी जीत जाता हूँ, कभी सीख जाता हूँ, बस बिना लड़े भागता नहीं हूँ|
        हमे मुसीबतों से जरुर भिडना चाहिए , लेकिन अधूरी ताकत से नहीं , अधूरी ताकत से भिडेगे तो मुसीबत हम पर हावी होगी और हमे गिरा देगी, इसलिए लड़ो मगर पूरी योग्यता और शक्ति से आधे अधूरे बल से जंग नहीं जीती जाती|
         आज दुनिया में करोडो आदमी असफल घूम रहे है, पर उनमे भी बुद्धिमान और प्रतिभाशाली लोगो की तादाद  ज्यादा है| तुम सोच रही होगी ये बड़ी अजीब बात है की बुद्धिमान, प्रतिभाशाली और असफल, हाँ ये बिलकुल सच है की कई बुद्धिमान और प्रतिभाशाली लोग आज असफल हैं, कार सिर्फ इतना है की उन्हें अधूरा काम करने की आदत है, वे किसी काम के अंत तक धैर्यवान नहीं रह सकते और काम को अधूरा छोड़ देते है, और अंततः असफलता ही उनके हाथ लगती है, कमाल की बात तो यह है की हमको बहुत चीजों के बारे में पता है, कि वे हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है, लेकिन आलस्य और अतिआत्मविश्वास के कारण उन्हें अमल में नहीं लाते और बने रहते है पीछे, इसलिए आगे जाने के लिए दिल को खुश रखने और अंततः संतुष्ट होने के लिए मेहनत और लगन चाहिए|
          मुझे पहले आदर्शवादी विचार घेरे रहते थे, आदर्शवाद के चक्कर में कई बार मन मसोस के उन चीजो को छोड़ दिया, जो मुझे करनी चाहिए थी, और फिर मुझे यथार्थवादी ख्याल अच्छे लगने लगे और मैं उन्हें ही जहन में जगह देने लगा, फिर कुछ समय बाद लगा आदर्शवाद असल में आदर्शवाद ही होता है पर अगर यथार्थ में उसको मिला दें तो, फिर अब दोनों से प्यार हो गया, और दोनों की सन्धि बनाकर चलने की कोशिश करने लगा |
      बस यही मेरा असल राज है वो है सामंजस्य बनाने कि कोशिश
      बाकि मजबूत और कमजोर या परिस्थितियों से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना हमारी मनस्थिति से पड़ता है इसलिए मनस्थिति बेहद मजबूत बनाओ लड़की और अपने दिल को से ही मासूम और पवित्र रहने दो, जिंदगी तुम्हारी ही है ,
                                                   ढेर सारा प्यार लड़की❤️❤️❤️❤️❤️
                                                                                                                       पीयूष जैन
                                                                                                                       गौरझामर
                                                                                                                      १२/०८/२०१८






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उन लड़को के लिए जो सपने देखते है   आशा है आप सभी स्वस्थ और आनंद में होंगे ,  कुछ दिनों से आप लोगों से कुछ बातें कहनी थी ,  पर आवश्यक कार्यो...