Sunday, September 9, 2018

डिम्पल को



प्रिय
डिम्पल जगवानी
जिन्दा होना मेरी चॉइस है, इसे मैं ओरों पर नहीं छोड़ता , लेकिन इतना और समझ लो खाली साँस लेने क नाम जिन्दा रहना नहीं है, बल्कि जब हम खुद को जाहिर करते हुए ऐसे काम करे जिससे खुद को खुद के वजूद का अहसास हो उसे मैं जिन्दा होना मानता हूँ, आशा है तुम  भी जिन्दा होगी और अपने कारनामो से खुद के वजूद से मुखातिब भी
फिलहाल कोटा में हूँ, पढ़ते पढ़ाते हुए कुशलता से, तुम भी ग्वालियर में कॉलेज में पढ़ते और लड़ते हुए कुशलता  से होगी .
तुम्हे काफी दिनों से पत्र लिखने की सोच रहा था, पर हर बार कोई न कोई वजह से टालता रहा पर आज टाल न सका, पत्र किसी को एक वजह से लिखता हूँ, उससे अपनी बात बेहतर तरीके से कहने के लिए,  आज कल सोशल मीडिया का जमाना है, जहाँ आसानी और जल्दी से बातें एक दूसरे तक पहुँच जाती हैं, पर उसमे वो बात नहीं जो धीरज से किसी प्यारे के ख़त का इंतजार करते हुए होती थी, लेकिन  आजकल वो इंतज़ार ख़त्म कर दिया, अज की टेक्नोलॉजी ने और वो मज़ा भी ...
तुम सुलझी हुई लड़की हो, शर्मीली नहीं हो, पर पारंपरिक और सांस्कृतिक वातावरण में जन्मने और जीने वाली (हम लडको को हर लड़की प्यारी लगती हैं) उसके बावजुद नेता टाइप, किरांतिकारी मटेरियल हो, बिलकुल किसी स्वतंत्रता सेनानी की तरह, पर तुम्हारा समझदार रुख इन सब चीजों को स्थिर और  एक साथ इकठ्ठा बनाये रखता है, मैं जितनी भी लड़कियों से मिला, तुम्हारी उम्र की , उनमे तुम मुझे हमेशा चौका देती हो, अपनी समझदारी से...
खेर कोई भी कार्य हो उसकी शुरुआत महत्वपूर्ण होती है, अगर शुरुआत अच्छी होती तो उसका अंत भी अच्छा ही होता है, इसका कारण है हमे जब किसी कार्य का विश्वास होता है, और जब काम की शुरुआत सही हो जाए तो वह विश्वास द्विगुणित हो जाता है और उत्साह से हम वह कार्य करने लगते है और वह काम शानदार ढंग से अंजाम तक पहुंचता है , बकौल प्रेमचंद “भय और उत्साह संक्रामक वस्तुएं हैं
तुम्हे अक्सर कॉलेज से जगह जगह प्रदर्शन के लिए जाते देखता सुनता हूँ, हर बार बेहद महत्वपूर्ण चीजों के लिए शासन से लड़ता देखता हूँ, तो खुद के लिए प्रेरित हो जाता हूँ , जब ये इतनी फूल सी लड़की कर सकती है तो हम क्यों नहीं .....
जन्मदिन के दिन तुम्हारी तरफ से कोई शुभकामनाएं नहीं आई थी, और हम नाराज हो गये थे, लेकिन मेरे स्वभाव में ये रहा की किसी से लम्बे समय तक मैं नाराज़ नहीं रह पाता, ज्यादा से ज्यादा, १ दिन उसके बाद सब नाराज़गी गायब, मुझे उसके द्वारा की गयी पहली अच्छाईयाँ उसकी एक गलती पर भारी लगती है, तो जल्दी से माफ़ कर देता हूँ ... कॉलेज टाइम पर तो  होता ये था, पीयूष कुमार की किसी से लड़ाई हो गयी और लड़ाई के एक घंटे बाद पीयूष कुमार उस लड़के के गले में हाथ डाले घूम रहे है, चाहे कितना भी गुस्सा क्यों न हो दिन भर से ज्यादा नहीं टिकता....उसके बाद सब सामान्य हो जाता... इससे मेरा दिमाग ठिकाने पर और दुरुस्त रहता है.. मेरी बेफिक्री का एक कारन यह भी है....
हाँ बेफिक्री और बेखबरी में बड़ा अंतर है, उसे समझे बिना भी बड़ी गडबड हो जाती है ... कई बार लोग बेखबरी को बेफिक्री समझ लेते है, और बाद में रोते रहते हैं ,,,,
 अजीब सा लगता है जब लोग आसान सी समस्या को पहाड़ सा मानकर बैठ जाते है और निराश हो जाते है, बेहद दुखी ..  अगर वो उस पर बैठकर विचार करें तो वो समस्या हवा हो जाए ... लेकिन उन्हें दुखी होने और निराश होने में ही मजा आता है, मेरे पास ऐसे लोगो की लम्बी लिस्ट है.  
दो बातें कहूँगा
१.     उत्सुकता अच्छी चीज़ है पर गलत जगह की उत्सुकता हमारे लिए घातक ही होती है .. इसलिए उत्सुकता हो लेकिन हमारे क्रिएशन में... प्रेरणा सभी की जरुरत होती है, इसलिए प्रेरित करने वाली वस्तुओ के करीब रहे....
२.     इन्सान जब जब शांत रहता है तब तब वह कार्य का पर्यवेक्षण और आंकलन बेहतरीन तरीके से करता है, क्योंकि उस समय हमारा दिमाग भी शान्त और एकाग्र  होता है, इसलिए जब फैसले लेना हो तो  दिमाग को शान्त होने दो ...
 जैसी अभी हो लड़ाकू, जुझारू और प्यारी हमेशा वैसी ही रहो लड़की ......
और हाँ समझदार होने में कोई समझदारी नहीं है
ढेर सारा प्यार पहुचें लड़की
                                                                                                                                                                       शुभकामनाओ सहित                                             
                             पीयूष जैन शास्त्री    
                                                                                 

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