Monday, September 17, 2018

सोनम को पत्र

प्यारी बहन
सोनम
कोटा और मजे एक दूसरे के पर्यायवाची है आजकल मेरे लिए, इसलिए कोटा में मजे है दरअसल असली मजे आते हैं सीखने में और यहाँ सीखने के खूब मौके है, इसलिए मैं यहाँ खुश हूँ, तुम भी मालथौन में पढ़ते हुए मजे में होगी, और आसपास के लोगो को हँसा रही होगी.....
अरपंच समाचार यह है, की १४ से दशलक्षण प्रारंभ हो गये हैं, और शास्त्री के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, की मैं बाहर प्रवचन करने के लिए नहीं गया, कोटा में ही होस्टल में रह रहा हूँ, लेकिन माहोल वही है, शानदार और शालीनता से वैराग्य और संयम के पर्व मनाये जा रहे ... ये पर्व मुझे पसंद है, विशुद्धि को बढ़ने वाले, इनकी विशेषता यही की आमतौर पर पर्वो पर खाने और खेलने की बाते होती है. मस्ती की बाते होती है, लेकिन ये पर्व हमे विचार करने का मौका देते हैं, रूककर खुद को देखने का, साल भर क्या किया इसको देखने का, सालभर क्या करेगे इसकी योजना बनाने का, १० दिन तक १० धर्मों को समझना और सालभर उनको जीवन में उतारना, मतलब पूर्ण प्रयोग... और सच ही तो है धर्म परिभाषा नहीं प्रयोग हैं.. इन दश धर्मों की एक खासियत मुझे लुभाती है, वह ये की ये पर्व जीव मात्र के गुणों से सम्बंधित है किसी व्यक्ति विशेष भर के नहीं, और कोई भी इसे मना सकता है, वर्ष भर मना सकते है, क्रोध नहीं करना,घमंड नहीं करना, मायाचारी नहीं करना, जैसी बातें हमे जितनी साधारण लगती हैं पर इनके अन्दर खूब सार भरा है, बस सोचने की जरुरत है ..
तुम भी इन पर्वों को संयम और त्याग के साथ मना रही होगी.
खेर तुम्हे पत्र लिखना था बहुत पहले पर पता नहीं तुम्हे लिखने को कुछ ऐसा था ही नहीं जो पत्र में लिखा जा सके..
परसों इन्जीनियर डे मनाते वक्त तुम्हारी याद बेहद आई,  उस वक्त लगा इंजीनिअर तुम जैसे होने चैये जो किचिन में अपने इंजीनियरिंग के नमूनो का इस्तेमाल करके लजीज भोजन बना कर खिला दें (शादी के बाद मैं और तेरी भाभी तेरे पास खाना बनाने की ट्रेनिंग लेने आयेंगे सो तैयारी करके रखना सब सिखाने की), लास्ट टाइम केले के पराठों का स्वाद अब भी जीभ पर है, खेर इंजीनियर इंजिनीयरिंग छोड़कर कुछ भी कर सकते हैं .... तुम्हारे सब शौक लडको वाले, आदते सब लडको की, बेफिक्र होना तुम्हे देखकर आया, खेर मुझे लगता है मेरे मामा के घर २ लड़के हैं, एक नानू और एक तुम..
मुझे तुम्हारे विचार पसंद आते थे, तुमसे शरारतें सीखी,(हमने कुछ दोस्तों ने भी मिलकर एक दोस्त को लेटर लिखा था वोई वाला) और लड़ना भी, बड़ा मजा आता है तुम जैसे बच्चे बने रहने में, खेर जिम्मेदारियां अपनी जगह पर खुद के भीतर का बच्चा बचा रहना चैये, ससुरा वोई तो कमाई है, अपनी |
खेर फोन पर ढेरों बातों में कुछ अधुरा रह जाता है, वह शायद कभी पूरा नहीं होता, ढेरों सवाल मेरे शायद कभी पूरे न होंगे...
खेर चिढाना कभी बंद न करने वाला सो ज्यदा खुश मत होना....
तेरे लिए पिछले साल कुछ पंक्तिया लिखी थी
सवेरे सवेरे पत्तियों पर पड़ी ओस की बूंद सी
नाजुक या गुलाब की कली सी कोमल है ये
नर्म घास की हरियाली सी जिन्दा या
 हवाओं में घुंघरू की तरह तैरती सी है ये
बातें करती बेखोफ झूमती गाती सी है
या नाचती इठलाती पगलाती सी है
तेज़ रौशनी सी ये  ज्ञान की पतासी सी है
कुल्हड़ में गर्म चाय से उठती कुँहासे सी है
तू दिल में बसी थोड़ी ख़ामोशी सी है
                                 और मेरी कलाई पर बंधी पीली राखी सी                                                           बैठ कर करते थे वो फोन पर बातों सी है
                                 थोड़ी बचाके रखी पिछली लड़ाई सी है
    ढेर सारी बधाई और बहुत सारा प्यार पहुचे    
                                                                         छोटा भाई
                                                                           पीयूष 



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