संस्कृत में तीन वचन होते हैं एक वचन द्विवचन और बहुवचन ,, 2 पत्र लिखे जा चुके है और ये आज तीसरा पत्र याने बहुवचन वाला पत्र ।
तो आज का पत्र लिखा जा रहा है कैरोलिना में रहने वाली जिन्हें मैं ताई बुलाता हूँ मतलब शिवांगी ताई को
जब यह पत्र लिखना शुरू किया था तो बहुत लोगों के मैसेज आये की उन्हें भी पत्र लिखा जाए और जब मैंने पिछले ब्लॉग की लिंक ताई को भेजी तो उन्होंने कहा मुझे भी लिखना ओर तब मुझे लिंक भेजना खेर ये पत्र पहले ताई को मेल किया जाएगा और फिर आप पाठकों को नज़र होगा...
साथ ही सभी पाठकों से कहूँगा आपकी जो भी प्रतिक्रियाएं है उन्हें कॉमेंट सेक्शन में मुझ जरूर बताएं , आपकी प्रतिक्रियाये इन पत्रों के लेखन में सांस की तरह हैं।
तो आज का पत्र लिखा जा रहा है कैरोलिना में रहने वाली जिन्हें मैं ताई बुलाता हूँ मतलब शिवांगी ताई को
जब यह पत्र लिखना शुरू किया था तो बहुत लोगों के मैसेज आये की उन्हें भी पत्र लिखा जाए और जब मैंने पिछले ब्लॉग की लिंक ताई को भेजी तो उन्होंने कहा मुझे भी लिखना ओर तब मुझे लिंक भेजना खेर ये पत्र पहले ताई को मेल किया जाएगा और फिर आप पाठकों को नज़र होगा...
साथ ही सभी पाठकों से कहूँगा आपकी जो भी प्रतिक्रियाएं है उन्हें कॉमेंट सेक्शन में मुझ जरूर बताएं , आपकी प्रतिक्रियाये इन पत्रों के लेखन में सांस की तरह हैं।
प्यारी
शिवांगी ताई
मैं यहाँ बिल्कुल बढ़िया हूँ और पूरी तरह जिंदा भी , आशा है आप भी देश के बाहर अपनी दुनिया मे कुशलता से होंगी..
आज मैं आपको कोटा के मिजाज के बारे में बताता हूँ (आज शाम को घर भी निकल रहा हूँ)
जब मैं और निलय जी (मेरे सीनियर) बाइक से दूसरे दिन कोटा के लिए निकले तो उन्होंने मुझे चेतावनी दी
"बेटा कोटा में बाइक से घूमने से पहले इत्ता समझ लो कि वापस जिंदा आने की कोई गारंटी नहीं है"
खेर बाइक का हैंडल छोड़के उन्हें ही थमा दिया: कुछ दूर निकले ही थे कि चेतावनी के रंग दिखे ,एक आदमी खुली चलती सड़क पर लट्ठ घुमा रहा था दूर से निकलने पर भी मेरी पीठ पर लट्ठ की हवा पड़ी ।, खेर जिंदा बिना किसी नुकसान के हम सब्जी मंडी पहुँचे , वहाँ देवरानी जेठानी नाम की एक दुकान थी मेरा माथा तो अब सनका यार घरों में देवरानी जिठानी की बनी हो ऐसा सुनने में आना बहुत दुर्लभ बात है और यहाँ देवरानी जिठानी दोनों मिलकर एक दुकान चला रही अब इतना झेलने के बाद असली बात तो अब आयी जैसे ही हम बाहर आये तो उस दुकान की बाहरी दीवाल पर लिखा था " यहाँ पिसाब करना मना है अन्यथा ढंडा पड़ेगा"
अन्यथा जैसा तत्सम और ढंडा जैसा शब्द एक पंक्ति में पढ़के दिल खुश हो गया।
मेरठ के बाद कोटा में भी यही हाल है कि सामने गाडी भी हो तो कोई गाडी नहीं रोकता ब्रेक पर पैर रखना यहाँ गुनाह माना जाता है शायद या ये सोच हो की साला सामने वाला नहीं रोक रहा तो हम काहे रोके... एक एक्सीडेंट मेरे सामने भी हुआ वो लोग गिरे उठे और लड़ने लगे खेर हमनें लड़ाई न दीखके होस्टल में जाने में ही भलाई समझी...
बाकि जिस होस्टल में मैं हूँ वहाँ खाने में मसाला बहुत होता है तो शुरुआत में बिना छोंक की दाल सब्जी खाने लगा, पर इससे पेट खराब हो गया , फिर मसाले वाला भोजन शुरू किया तो पेट एकदम सही हो गया शुरुआत में परेशानी हुई मसाले वाले भोजन में पर अब आदत हो गयी, दरअसल हमारे जो ये मसाले होते हैं एंटीबायोटिक होते है यहाँ का पानी थोड़ा भारी और फ्लोराइड वाला है उसे न पचाने के कारण पेट खराब हुआ, पर मसाले जो एंटीबायोटिक थे उन्हें खाते ही पानी पचना शुरू हो गया , कई बार ऐसा ही तो होता है हमारे साथ , जो चीज़ हमारे पास आसानी से उपलब्ध होती है उसके बजाय हम डॉक्टर के पास जाकर सही में बीमार हो जाते हैं,,, जबकि वो समस्या खाने में थोड़े परिवर्तन करके दूर की जा सकती है ।
मेरे विद्यार्थियों के साथ उनके बीच में रहता हूँ तो अक्सर कोशिश ये करता हूँ उन्हें दवाइयाँ न दी जाएं और उनके खाने में सुधार करके उनकी शारीरिक समस्याएं सुलझा दी जायें और आमतौर पर मैं सही साबित होता हूँ।
दूसरी तीसरी बार कोटा सिटी में बाइक लेके जाने पर कोटा के लोग ज्यादा बेहतर लगे
ये कहना मुश्किल है कि कोटा ने मुझे अपनाया है या मैंने कोटा को अपनाया है शायद हम दोनों ने ही एक दूसरे को अपना लिया है बिलकुल अपनी तरह।
शिवांगी ताई
मैं यहाँ बिल्कुल बढ़िया हूँ और पूरी तरह जिंदा भी , आशा है आप भी देश के बाहर अपनी दुनिया मे कुशलता से होंगी..
आज मैं आपको कोटा के मिजाज के बारे में बताता हूँ (आज शाम को घर भी निकल रहा हूँ)
जब मैं और निलय जी (मेरे सीनियर) बाइक से दूसरे दिन कोटा के लिए निकले तो उन्होंने मुझे चेतावनी दी
"बेटा कोटा में बाइक से घूमने से पहले इत्ता समझ लो कि वापस जिंदा आने की कोई गारंटी नहीं है"
खेर बाइक का हैंडल छोड़के उन्हें ही थमा दिया: कुछ दूर निकले ही थे कि चेतावनी के रंग दिखे ,एक आदमी खुली चलती सड़क पर लट्ठ घुमा रहा था दूर से निकलने पर भी मेरी पीठ पर लट्ठ की हवा पड़ी ।, खेर जिंदा बिना किसी नुकसान के हम सब्जी मंडी पहुँचे , वहाँ देवरानी जेठानी नाम की एक दुकान थी मेरा माथा तो अब सनका यार घरों में देवरानी जिठानी की बनी हो ऐसा सुनने में आना बहुत दुर्लभ बात है और यहाँ देवरानी जिठानी दोनों मिलकर एक दुकान चला रही अब इतना झेलने के बाद असली बात तो अब आयी जैसे ही हम बाहर आये तो उस दुकान की बाहरी दीवाल पर लिखा था " यहाँ पिसाब करना मना है अन्यथा ढंडा पड़ेगा"
अन्यथा जैसा तत्सम और ढंडा जैसा शब्द एक पंक्ति में पढ़के दिल खुश हो गया।
मेरठ के बाद कोटा में भी यही हाल है कि सामने गाडी भी हो तो कोई गाडी नहीं रोकता ब्रेक पर पैर रखना यहाँ गुनाह माना जाता है शायद या ये सोच हो की साला सामने वाला नहीं रोक रहा तो हम काहे रोके... एक एक्सीडेंट मेरे सामने भी हुआ वो लोग गिरे उठे और लड़ने लगे खेर हमनें लड़ाई न दीखके होस्टल में जाने में ही भलाई समझी...
बाकि जिस होस्टल में मैं हूँ वहाँ खाने में मसाला बहुत होता है तो शुरुआत में बिना छोंक की दाल सब्जी खाने लगा, पर इससे पेट खराब हो गया , फिर मसाले वाला भोजन शुरू किया तो पेट एकदम सही हो गया शुरुआत में परेशानी हुई मसाले वाले भोजन में पर अब आदत हो गयी, दरअसल हमारे जो ये मसाले होते हैं एंटीबायोटिक होते है यहाँ का पानी थोड़ा भारी और फ्लोराइड वाला है उसे न पचाने के कारण पेट खराब हुआ, पर मसाले जो एंटीबायोटिक थे उन्हें खाते ही पानी पचना शुरू हो गया , कई बार ऐसा ही तो होता है हमारे साथ , जो चीज़ हमारे पास आसानी से उपलब्ध होती है उसके बजाय हम डॉक्टर के पास जाकर सही में बीमार हो जाते हैं,,, जबकि वो समस्या खाने में थोड़े परिवर्तन करके दूर की जा सकती है ।
मेरे विद्यार्थियों के साथ उनके बीच में रहता हूँ तो अक्सर कोशिश ये करता हूँ उन्हें दवाइयाँ न दी जाएं और उनके खाने में सुधार करके उनकी शारीरिक समस्याएं सुलझा दी जायें और आमतौर पर मैं सही साबित होता हूँ।
दूसरी तीसरी बार कोटा सिटी में बाइक लेके जाने पर कोटा के लोग ज्यादा बेहतर लगे
ये कहना मुश्किल है कि कोटा ने मुझे अपनाया है या मैंने कोटा को अपनाया है शायद हम दोनों ने ही एक दूसरे को अपना लिया है बिलकुल अपनी तरह।
आप अपने नए घर में शिफ्ट हो चुके होंगे, भारत आने पर इसकी भी पार्टी ली जायेगी ।
बाकी ढेर सारी बातें है जो आपको बतानी है पर कल पेपर है तो कभी और ऐसे ही किसी पत्र में शेष बातें होंगी।❤️
स्नेहाभिलाषी
पीयूष जैन शास्त्री
बाकी ढेर सारी बातें है जो आपको बतानी है पर कल पेपर है तो कभी और ऐसे ही किसी पत्र में शेष बातें होंगी।❤️
स्नेहाभिलाषी
पीयूष जैन शास्त्री
Ye h apna kota jaha sb kuch dekhne ko milega...... Yaha log bhi nirale h jo yha aakr bs jata h wo bhi nirala bn jata h.......
ReplyDeleteChannel ke pani ka asar h
Chambel
ReplyDeleteहाँ पानी तो दमदार है
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा की कोटा की आवो हवा पसंद आइ तुमको ।
ReplyDeleteअच्छे से ध्यान रखना अपना पार्टी तो इंडिया आके ही देंगे लेकिन कोटा की प्याज कचौरी ज़रूर खाना हमारी साइड से ����
स्वास्थ्य रहो मस्त रहो व्यस्त रहो
तुम्हारी ताई
tai i am jain so pyaj ni khate baki kota kachori(daal kachori) ke lutf le rahe hai
Delete😊
Deleteकोटा है ही ऐसा मजेदार शानदार धमाकेदार
ReplyDelete👍👍👍
Deleteडिजिटल वर्ल्ड में इतने प्यारे खत,,,, आजकल कौन लिखता है भला ��
ReplyDeleteमुझे भी खत लिखना पीयूष
कुछ मेरा हाल पूछना
कुछ अपना बताना
अंजानो से अपनेपन की
उस प्यारी दुनिया में ले जाना
मुझे भी खत लिखना पीयूष
कैसे गुज़री, कैसे गुज़ारोगे
समय को शिक्षा पर वारोगे
बड़ी हूँ तुमसे पर मुझे समझाना
जीवन में खुशियाँ कैसे डालोगे
मुझे भी एक खत लिखना पीयूष
असली कमाई यही है ताई 💛💜💚
Deleteबाकि लिखेंगे जरूर खत आपको
बहुत अच्छा लिख लेते हो
Deleteधन्यवाद
Deleteअच्छा है पीयूष
ReplyDeleteशुक्रिया भाईसाब
Deleteउम्दा लेखन । सरल भाषा में अपनी बात कहने का तरीका कोई आपसे सीखे । आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हुई ... आपकी रूचि मौसी
ReplyDeleteशुक्रिया ❤️💛💜💚
Delete