Friday, August 31, 2018

विभा दीदी का पत्र

और ये छटवां पत्र
हाँ इसे पब्लिश करने में थोड़ी देर हुई उसके लिए माफी माज़रत
खेर ये आपकी नज़र है आप पढ़े और आनंद लें , और जो भी बात आपको पढ़ते वक्त लगे उसे कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताएं,
ये पत्र सम्हल निवासी विभा दीदी
को लिखा गया

प्रिय विभा दीदी
   मैं यहाँ कोटा में शानदार माहोल में कुशलता से पूर्वक जिन्दा और मजे में हूँ , और आशा है आप भी कुशलता पूर्वक और पूर्ण स्वस्थ होंगी...जिंदगी को जीते हुए..
   आपकी कविताएँ पढ़ी सारी की सारी जितनी भी आपके ब्लॉग पर थी, अब लगता है अभी तो मुझे बहुत कुछ सीखना है, आपकी कविताओ को पढ़ने के बाद मेरे जहन में पहली बात आई, वो ये की एक दिन हम भी ऐसी कविताएं लिख पायेगे या नहीं !
    छटवी से लेकर दसवी तक, मुझे जानने वाले लोग मुझे अक्सर अलग अलग विशेषण दे देते थे, बाबा, अजीब, मस्तमौला, पागल, बेपरवाह, पढाकू, सनकी पहले मुझे इससे बड़ी समस्या होती थी मैं अक्सर इन बातों को सुनकर बुरी तरह चिढ जाया करता था, और लड़ बैठता था, और होता ये था की मैं पिट जाया करता था, और बार-बार हारने के बाद महसूस किया की हाथ पैरों की लड़ाई में इन्हें हराना आसान नहीं है, तो पुस्तकों को दोस्त बना लिया, और उसके बाद उनकी सोहबत में ही रहा, आखिरकार कई बार ऐसा हुआ दोस्त मुझे चिढाते रहे और मैं हँसते हुए निकल जाया करता, क्योकि मैं जान गया था लड़ाई उनके चिढाने से नहीं बल्कि बेबकूफो को जवाव देने से होता था, और फिर जाना की मूर्खो को हराने की कोशिश करना सबसे बेकार बात है..... (ये भर्तहरी के नीतिशतक पढ़ने के पहले की बात है)......
लेकिन उन पांच सालों में एक चीज़ मुझ में आ गयी और वो है चीजों से लड़ने और भिड़ने की आदत, जो अब तक बनी है... शायद ये उन सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि रही!
      चीजों को समझे बिना ही डरकर भाग जाना कायरता है, और मैंने कभी ये रास्ता नहीं चुना, ढेरों असफलतायें भी हाथ लगी पर हमेशा कुछ सिखाकर ही गयी, मैंने अपनी कविता का पाठ ग्यारहवी कक्षा में स्मारक के मंच से की, और पहली ही कविता में मेरी भद्द पिट गयी, कविता भी मेरी तरह अजीब थी अरे ये संसार तो नोटंकी है, कविता पाठ के बाद लोग मेरा नाम भूल गए और हम नोटंकी हो गए, करीब महीने भर तक ये सिलसिला चला और फिर लोगो को मेरा नाम फिर से याद आने लगा, लेकिन परेशान होने की जगह मैं और ज्यादा कवितायेँ लिखने लगा....
     फिर जिस काव्यपाठ में पहला राउंड भी पूरा नहीं कर पाया था अगले साल दूसरे राउंड को पार करते हुए प्रथम आया और होस्टल के अंतिम वर्ष तक ये सिलसिला चलता रहा, मैं प्रथम आता रहा..
      खेर इस बात से कहना ये चाहता था जब लोग आपको को नीचा दिखाने की कोशिश करें तब आपके पास मौका होता है और भी ऊपर उठ जाने का..
     अब दूसरी बात मुझे हमेशा से दोस्तों की कमी रही, जिसके कारण किताबें यार बन गयी, अब होता यूँ की अपनी आदतों और इमेज के कारण लोग मुझ से दूर रहते ,, इसलिए नहीं की मुझ में कोई खामी थी बल्कि मैं बदनाम था अच्छे काम करने के लिए और बुरा काम करने पर तुरंत टोक देने के लिए बजाय यह जाने की सामने वाले को वैसा ही काम करना पसंद है ..
     आदर्शवादी होने का बस यही घाटा हुआ की मुझे मित्र न मिल पाये, बाद में पता चला ठीक ही हुआ, मुझे बाद में कम पर बेहतरीन दोस्त मिले ... मुझे अपने निर्णयों पर कभी अफ़सोस नहीं हुआ या तो निर्णय सही साबित हुआ या हम उससे कुछ सीख गए तीसरी बात कभी हुई नहीं.....
     बस ऐसे ही गुजर रही है अभी भी लड़ते, हुए जूझते हुए पर जिन्दा रहने के अहसासों के साथ, और बस यही पूँजी है मेरी , और ऐसे ही गुजारना है लड़ते हुए, जूझते हुए जिन्दा रहने के अहसासों के साथ .....
     समय के साथ क्या होता है, ये मुझे नहीं पता ताई लेकिन मुझे इतना पता है, की मैं पीयूष हूँ, अपने अक्खड जुनूनी पिता का बेटा, एक बार पापा को फोन पर मैंने कहा (तब पापा को रुपयों की समस्या हो गयी थी और सोयाबीन की फसल बिगड गयी थी )पापा घबराना मत कुछ न कुछ जुगाड हो जायेगी ... पापा की अक्खड आवाज़ तुरंत लौटी– बेटा जब घबराने की बात थी तब तो घबराये नहीं अब का घबरायेगे ( इससे दो साल पहले पापा के ट्रक का एक्सीडेंट हो गया था और रोजगार का वही साधन था मैं उस वक्त 1 ST YEAR  में था ) बस अपने पापा का बेटा हूँ तो जितनी परेशानियाँ हों उनसे बस पापा के जूनून के साथ लड़ते हुए चलते जायेगे...
    खुशियों का मतलब मेरे लिए केवल इतना रहा है की आज का दिन मजेदार हो और कुछ सीखते हुए , बाकि मेरे एक सीनियर मुझे पागल प्रेमी कवि कहते थे तो एक बात बता दूँ पागल हमेशा खुश रहते हैं. हमेशा मस्त, हर हाल में.....जीवन में खुशिया बस यूँ ही आती हैं.. बस यूँ ही, बस यूँ ही .....
                                               स्नेहाकांक्षी  
                                         पीयूष जैन शास्त्री


8 comments:

  1. मेरी रचनायें पढ़ने और सराहने के लिए शुक्रिया पीयूष।
    तुम्हारा पत्र बहुत बहुत बहुत अच्छा लगा, आज की इंटरनेट वाली दुनिया में हम पत्र लिखना भूल से गये हैं, मेरा भाई जब बाहर पढ़ने गया था तब उसे पत्र लिखती थी, आज भी संभाल कर रक्खे हैं, पढ़कर हँसी भी आती है और आँसू भी। हँसी इसलिए कि तब पता नही किन किन बातों को खत में लिख देते थे, और आँसू इस बात पर कि आज लिखने को कोई बात ही नहीं। राखियाँ भी बिना खत के ही पोस्ट कर दी जाती हैं अब तो,,,,
    आज तुम्हारे पत्र ने उन सब उम्मीदों को ज़िंदा सा कर दिया है। तुम्हें खूब सारा आशीर्वाद,,,तुम्हारे पत्र के जवाब में इतना ही कहना चाहूँगी कि जीवन में खूब तरक्की करो लेकिन रिश्तों को इसी तरह थामे रहना।
    खत लिखते रहना पीयूष 💖💖

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    1. शुक्रिया दीदी आपको पसंद आया यही मेरी पूंजी है
      बाकि जो कहा गया अमल में लाऊंगा जरूर

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    2. ढेर सारा प्यार पीयूष 💙💚💛💜❤

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  2. एक शब्द होता हैं सुकुन बस वही मिलता हैं तुमको पढकर

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    1. बहुत शुक्रिया
      आपका अनजाने मित्र

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  3. छा गए गुरु जी.....
    इमोशनल कर दिया....मेरे भी इसमें तजुर्बात समझ आये।
    देर से पड़ने के लिए माफी चाहता हूँ।
    बाकी आप लिखते रहें जिससे मुझे प्रेरणा मिलती रहती है👌👌👌👍👍👍😊3😊😊😊

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    1. सोमिल तुम सीखते रहो मेरे भाई

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