Sunday, October 21, 2018

एक जिगरी को


प्यारे लड़के 
कोटा में हूँ, और मजे में हूँ स्वस्थ और मस्त एकदम, आशा है तुम भी ग्वालियर में स्वस्थ और मस्त होगे,
कल तुमसे फोन पर बात हुई इनमे भविष्य आजीविका और पढाई के बारे में ज्यादा हुई, और जवान होने के बाद ये सवाल ही हमारे जहन को मथ कर रख देते हैं,
कई बार हम जिस रास्ते पर चल रहे होते है उस से एक  दफे तो भटक जाने का मन करता है, जो उस भटकने  के ख्याल को झटक देता है वो मंजिल पर पहुँच जाता है, और जो बापस लौट आता है वो भटकता ही रहता है, कुछ बिरले ही होते है जो वापस लौट कर भी किसी नयी मंजिल को पा लेते हैं. लेकिन उसके लिए हिम्मत चाहिए ढेर सारी....
तुम्हारे घर की परिस्थिति मेरे स छुपी नहीं है, और मैं ये मान कर चल रहा हूँ, पापा के बाद अब तुम्हे घर का दारोमदार सम्हाल लेना चैये, हाँ जिन्दगी में मौज होनी चैये लेकिन जब तक हम किसी एक चिंता से घिरे रहे तब तक हमारे चित्त को ऐसी खुशी नहीं सुहाती, तुमने जिन कारणों से अपनी राह से भटके या तुम्हे ऐसा लगता है की तुम भटक गये , सो मैं इसे भटकन मानता ही नहीं हूँ, ये महज़ एक पड़ाव है जो आमतौर पर हम जैसे लोगो के जीवन में आता है, छात्र जीवन में जिन समस्याओ की छाया से भी दूर रहे , उनका जिम्मेदारियों के रूप में सामने आ पड़ना , बहुत सुखमय अनुभव नहीं होता, लेकिन ये हमे हमारी असलियत दिखा जाती है, दरअसल जिन्दगी भी बड़े इम्तिहान से पहले टेस्ट लेती है, जिससे पता चल जाता है, की हम जिन्दगी के इम्तिहान के लायक है या नहीं... तुम हो मुझे ये पता है..
यार एक बात मुझे हमेशा आशान्वित करती है की . मौका हमेशा रहता है , चाहे कुछ भी हो .बुरी से बुरी पारिस्थितियो में क्यों न हो आप्शन हमेशा हमारे पास होता है, खेर ये तो अभी शुरुआत भर है, अभी भी सब ठीक है अगर तुम इसे और बुरा न बनाना चाहो तो, मुझे विश्वास है तुम ऐसा नहीं चाहते, तो बस शुरू हो जाओ अगली प्लानिंग के लिए,....
जो करो सोच विचारकर करो , कोई काम छोटा बड़ा नहीं लेकिन योग्यता जिसमे ज्यादा उपयोग हो वो करना...
दिन रात एक दुसरे के विपरीत नहीं पूरक हैं , सोचो गर रात न होती हो दिन की महिमा केसे आती और गर दिन ही दिन बना रहता तो हम जैसे आलसी नींद कब लेते, और जो रात ही बनी रहती तो चीजों का मजा हम केसे ले पाते बिना प्रकाश के , ऐसे ही दुःख सुख आते रहते है, पर हम उनसे कितना प्रभावित होते है , ये हमारी शक्ति संकल्प को बताते है, अपने संकल्प को मजबूत करो और लग जाओ मंजिल की तरफ ...
बाकि सोच लो मंजिल कौनसी चुनना है प्रकृति हमेशा संतुलन चाहती है उसे बनके रखो तो तुम्हे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता ..
तो सफ़र अब शुरू होता है
शुभकामनाओ सहित
पीयूष बाबा
गौरझामर     

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